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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. u ५८३ मिति घाई के० मिथ्यात्वमोहनीय पण श्री जिननापित जीवाजीवादिक अनंतधर्मात्मक तत्वश्नद्धानरूप सम्यक्त्व गुणने सर्वथा हणे बे, ते जणी ए पण सर्वघाति प्रकृति कहीयें. जो पण एना केटलाएक वे ठाणी तथा एक ठाणी रसस्पर्द्धक देशघातिया बे, तो पण अहींयां शुभाशुभ परिणामें बंधनी अपेक्षायें नयी लीधा. एटले एक केवलज्ञानावरणीय, एक केवलदर्शनावरणीय, पांच निद्रा, बार कषायाने एक मिथ्यात्वमोहनीय, एवं वीश प्रकृति सर्वघातिनी थई. दवे पच्चीस प्रकृति देशघाति कहे बे. तिहां देशघातिनी प्रकृतिना रसस्पर्द्धक स्थूल कमानी पेरें, मध्यमबिद्र कांबलानी पेरें छाने सूक्ष्मबि पटवस्त्रनी पेरें, स्थूल प्रदेश नीरस, असार, बहुप्रदेश अल्पवीर्य, चउनाण तिदंसणावरणा के० एक मतिज्ञानावरणीय, वीजं श्रुतज्ञानावरणीय, श्रीजुं अवधिज्ञानावरणीय, चोथुं मनः पर्यवज्ञानावरणीय, ए चार ज्ञानावरणीयनी प्रकृति तथा चक्षु, अचक्षु, अने अवधि, ए दर्शनावरणीयनी प्रकृति, एवं सात प्रकृति देशघातिनी जाणवी. जे जणी केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, ए बे प्रकृतियें ण श्रावसुं एवं जे ज्ञान ने दर्शननो अनंतमो अंश तेने देशथी हणे, ते जणी देशघातिनी कहीयें. जो पण अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय अने मनःपर्यवज्ञानावरणीयना केटलाएक रस स्पर्द्धक सर्वघातिया पण बे जेणे करी पोताना अवधिज्ञानादिकनो अंश मात्र नथी देखातो तो पण एनो रसोदय क्षयोपशम त्र्यविरोधि बे तेथी देशघातिनी कही. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ १३ ॥ संजल नोकसाया, विग्धं इ देस घाइ (प्रथ घातिन्यः प्रकृतयः ) प्रधाइ ॥ पत्ते तमुठाऊ, तस वीसा गो डुग वसा ॥ १४ ॥ अर्थ- संजल के० संज्वलना क्रोधादिक चार कषाय देशघातिया बे, जे जणी ए सर्वविरतिरूप जीवना गुणने देशथकी हणे बे. केम के एना उदयथी साधुने सातिचार व्रत याय. बीजा कषायना उदयथी मूलजंगे अतिचार होय माटें एने देशघाति कही बे. नोकसाया के दास्यषट्क तथा त्रण वेद, ए नव नोकषायमोहनीय प्रकृति पण देशघातिनी बे, जे जणी ए प्रकृति चारित्रने विषे पण अतिचार मात्र उपजावे, पण एकली अनाचारजनक न होय, माटें देशघातिनी कही. विग्धंश्देघा के० अंतरायकर्मनी पांच प्रकृति, ए पण देशघातिनी होय, जे जणी पुजलद्रव्यनो अनंतमो जाग दान, लाज, जोगादिकने विषे होय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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