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________________ ५४ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ . ॥ अथ ध्रुवोदयिन्यः निरूप्यते ॥ हवे सत्तावीश ध्रुवोदयी प्रकृति कहे ॥ निमिण थिर अधिर अगुरुअ, सुद असुहं तेज कम्म चनवन्ना ॥ नाणंतराय दंसण, मिळं धुव उदय सगवीसा ॥६॥ अर्थ-निमिण के निर्माणनामकर्म, थिर के स्थिरनामकर्म, अथिर के अस्थिरनामकर्म, गुरुथ के० अगुरुलघुनामकर्म, सुहशसुहं के शुजनामकर्म अने अशुननामकर्म, तेश्र के तैजसनामकर्म, कम्म के कार्मणनामकर्म, चवन्ना के वर्णादिक चार, नाणंतराय के ज्ञानावरणीय पांच, तथा अंतराय पांच, दंसण के० दर्शनावरणीय चार, मिठं के मिथ्यात्वमोहनीय, धुवउदयसगवीसा के० ए सत्तावीश कर्मप्रकृतिने ध्रुवोदयी कहीयें ॥६॥ एक निर्माण, बीजं स्थिर, त्रीजुं अस्थिर, चोथु अगुरुलघु, पांचमुंशुल, बहुश्रशुज, सातमुं तैजस, आग्मुं कार्मण तथा चार वर्ण, एवं बार नामकर्मनी ध्रुवोदयी प्रकृति. एनो उदय, चारे गतिना जीवने सर्वदा होय. एना उदयनो व्यवछेद काल, तेरमा गुणगणाना प्रांतें . परंतु तिहां लगें तो सर्व जीवने विषे ए बार प्रकृतिनो उदय पामिये, ते जणी ध्रुवोदयी कहीये. ए मांहे थिर, अथिर, तथा शुज अने अशुन, ए चार प्रकृति विरोधिनी कही बे. पण ते बंधनी अपेक्षायें विरोधिनी लेवी, परंतु एनो उदय विरोधी नथी, जे नणी लोही, लाल, मूत्रादिक पुजलनो अस्थिर बंध अस्थिर कर्मोदयथी होय, तथा हाड, दांतादिकनो स्थिर बंध स्थिरकर्मना उदयथी स्थिर होय. एम चारे प्रकृति उदय अविरोधिनी , तेमज शुजनामोदयें मस्तकादिक शुन अंग होय, अने अशुज नामोदयें पादादिक अंग अशुन होय, ए रीतें उदय अविरोधी बे, ते मात्रै ध्रुवोदयी कही. एवं बार प्रकृति थ. पांच ज्ञानावरणनो उदय पण बारमा गुणगणा सुधी निरंतर सर्व जीवने होय. तेमज दानादिक पांच अंतरायनी प्रकृति तथा चक्कुरादिक चार, दर्शनावरणीयकर्मनी प्रकृति, एनो उदय पण बारमा गुणहाणा लगें होय, तेथी ए चौद प्रकृति पण ध्रुवोदयी कही, तथा मिथ्यात्वमोहनीयनो उदयविछेद प्रथम गुणगणे , ते नणी प्रथम गुणगणे वर्त्तता जीवने मिथ्यात्वमोहनीयनो उदय ध्रुव कहीयें, अने जो पण सास्वादनादिक गुणगणे मिथ्यात्व मोहनीयनो उदय न लाने, तो पण ते अध्रव न जाणवो. जे जणी ध्रवोदयीनुं एज लक्षण जे जे आपणा उदय व्यवछेद स्थानक लगें निरंतर जेनो उदय लाने,ते ध्रुवोदयी कहेवाय.एम सत्तावीश प्रकृतिकही॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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