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________________ ५६२ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ के मूलनेदनी अपेदायें चोथु प्रत्येकानंतुं , तेनो राशि अभ्यास करतां नव अनंता माहेढुंचन के चोथु जघन्ययुक्तानंतुं होय, पंचम के मूल नेदनी अपेदायें पांचमुं मध्यम युक्तानंतुं डे, तेने गुणणे के राशि अभ्यास करतां सत्तणंता के सातमु जघन्य अनंतानंतुं होय, ए रीतें प्रथम पद साथें बीजु पद कम्मा के अनुक्रमें जोमवु. ते के ते जघन्य युक्तासंख्याताने वली रूवजुश्रा के एकादि रूप नेलीयें, एटले एकादरूपें युक्त करीये तेवारें मद्या के मध्यमयुक्त असंख्यातुं होय, अने रूवुण के एक रूप हीन करीयें, तो तेवारे गुरुपछा के पागढुं प्रत्येकासंख्यातुं उत्कृष्टुं होय. तेम जघन्य असंख्याता असंख्यातामांहे पण एक रूप नेलीयें, तो मध्यम असंख्यातो असंख्यातो थाय, तथा एक रूप काढीये, तो उत्कृष्ट युक्तासंख्यातुं होय, एम जघन्य प्रत्येकानंतामांहेथी पण एक रूप काढे थके उत्कृष्ट असंख्याता असंख्यातुं होय, अने एक रूप नेलतां मध्यम प्रत्येकानंतुं होय. ए रीतें पागल पण सर्वत्र जाणवू. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ २ ॥ श्य सुत्तुत्तं अन्ने, वग्गिअमिकसि चनबय मसंखं ॥ होइ असंखासंखं, सहु रूवजुअं तु तं मशं ॥७३॥ अर्थ- इयसुत्तुत्तं के ए रीते सूत्रोक्त एटले श्री अनुयोगद्वारादि सूत्रमध्ये नव असंख्यातानां तथा नव अनंतानां स्वरूप ए रीतें कह्यां जे. एटले सूत्रोक्त विधि कह्यो. हवे मतांतरें वली अन्ने के अन्य कोशएक आचार्य बीजी रीते पण एजें स्वरूप कहें बे, ते रीतें कहीयें बैयें. वग्गियमिकसिचननयमसंखं के जे चोथु जघन्य युक्त असंख्यातुं तेनो वर्ग करीए, वर्ग एटलें तजुणो करीये, जेम नवनो वर्ग एक्याशी थाय, तेम जघन्य युक्त असंख्यातुं ते जघन्ययुक्त असंख्याता साथें तमुणो करीयें, तेवारे होश्वसंखासंखंलहु के सातमुं जघन्य असंख्याता असंख्यातुं थाय, तेमांहे रूवजुअंतु के० एकादि रूप नेली, तेवारें तंमचं के मध्यम असंख्याता असंख्यातुं आठमुं थाय. ॥ ३ ॥ रूवृण माश्मं गुरु, तिवग्गि तबिमे दसकेवे ॥ लोगागासपएसा, धम्माधम्मेगजिअ देसा ॥ ४ ॥ अर्थ-रूणमाश्मगुरु के वली तेहीज सातमा जघन्य असंख्याता असंख्यातामाथी एक रूप काढीयें, तेवारें बहुं उत्कृष्ट युक्त असंख्यातुं थाय. तेमाहेथी वली एकादि रूप हीन करता यावत् एक रूपें अधिक ज्यांसुधी चोथु युक्तासंख्यातुं होय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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