________________
षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४
५६१ ॥ हवे नव असंख्याताना नेद कहे जे ॥ रूव जुअंतु परित्ता, संखं लहु अस्सरासि अनासे ॥
जुत्तासंखिऊ लहु, आवलिया समय परिमाणं ॥ २ ॥ अर्थ-पूर्वोक्त उत्कृष्ट संख्याता मध्ये रूवजुअंतु के एक रूप नेलतां लहु के० जघन्य परित्ता के प्रत्येक ऽसंखं के० असंख्यातुं होय. अस्स के ए जघन्य प्रत्येक असंख्याताना जेटलां रूप दे, ते एक उलें मांमीये, नीचें तेनो श्रांक मांमीने तेटली वार तेटला गुणा करता जश्यें, एटले तेने रासिअप्नासे के राशि श्रन्यास कहीये. जेम असत्कल्पनायें प्रत्येक असंख्याताना रूप पांच कल्पीयें, ते उपरें पांच एकडा मांमीयें, तेनी हेवल पांच पांचडा माडीयें, गुणतां जश्य तिहा पांचने पांच साथे गुणतां पच्चीस थाय. ते वली पांच साथे गुणतां एकसो ने पच्चीश थाय, तेने वली चोथा पांचमा साथै गुणतां बसें ने पच्चीस थाय. तेने वली पांचमा पांचमा साथें गुणतां त्रण हजार एकसो ने पच्चीश थाय. ___ एम प्रत्येक असंख्याताना जेटलां रूप थाय, तेने वली तेटलीवार तेटला गुणा करतां जुत्तासंखिऊलहु के जघन्ययुक्त असंख्यातुं होय. एटले प्रत्येक संख्याताना जेटलां रूप , तेटला सरसवनो फरी राशि अभ्यास करीयें, अर्थात् तेटला सरसवने तेटलाज वखत तेटला सरसवें करी गुणीये, तेवारें चोथु जघन्ययुक्त असंख्यातुं थाय; तेणे यावलियासमयपरिमाणं के एक श्रावलिना समयनुं प्रमाण थाय. एटले एक श्रावलिकामा एटला असंख्याता समय होय. तेमांहेथी वली एक रूप हीन करीयें, तेवारें उत्कृष्ट प्रत्येक असंख्यातुं त्रीजु थाय, तथा जघन्य प्रत्येक असंख्याताथी मांडीने एक रूपें हीन उत्कृष्ट प्रत्येक असंख्याता लगे सर्व मध्यम प्रत्येक असंख्याता जाणवा. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ १॥
बित्ति चन पंचम गुणणे, कम्मा सग संख पढम चन सत्त ॥ एंता ते रूवजुआ, मजारुवुण गुरुपवा ॥२॥
अर्थ-श्रहीं वि के असंख्याताना त्रण नेदनी अपेक्षायें बीजु अने नव नेदनी अपेदाये चोथु, एवं जघन्य युक्त असंख्यातुं तेनो राशि अभ्यास करतां, सगसंख के० असंख्याताना नव नेदनी अपेदायें सातमुं जघन्य असंख्यातासंख्यातुं होय. त्ति के असंख्याताना त्रण नेदनी अपेक्षायें त्रीजु जघन्य असंख्यातासंख्यातुं, तेनो वली राशि अभ्यास करतां पढम के पहेतुं अनंतुं होय, एटले नव अनंतानी अपेदायें प्रथम जघन्य प्रत्येकानंतुं थाय. चन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org