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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४ ५६३ तेने पांचमुं मध्यम युक्त असंख्यातुं कहीये. हवे ते सातमु जघन्य असंख्याता असंख्यातुं तेनो जे अंक तेने तिवग्गि के० त्रण वेला वर्ग करीयें, जेम बगडाने त्रण वेला वर्ग करे उते बसें ने बप्पन्न थाय. एटले बे । चार, ए प्रथम वर्ग, चार चोक शोल, ए बीजो वर्ग, अने शोल शोलां बे बप्पन्नां, ए त्रीजो वर्ग, ए रीतें सातमा असंख्यातानो त्रण वेला वर्ग करीयें, पनी तबिमेदसकेवे के तेमांहे श्मे एटले था दश असंख्यातानी राशि नेलीयें, तेनां नाम कहीयें बैयें. __ एक लोगागासपएसा के लोकाकाशना प्रदेश एटले अंगुल प्रमाण काशखंड मांडेथी समय समय एकेक प्रदेश अपहरीयें, तो पण असंख्याती उत्सपिणी काल व्यतिक्रमे थके, एक अंगुल प्रमाण आकाश खंग निलेप थाय, तेहवा सर्व लोकाकाशना प्रदेश लेवा, तथा धम्माधम्मगजिअदेसा के बीजा तेटलाज धर्मास्तिकायना प्रदेश, त्रीजा तेटलाज अधर्मास्तिकायना प्रदेश, चोथा तेटलाज एक जीवना प्रदेश, ए चार परस्पर तुल्य . तिहां प्रदेश एटले जे केवलीनी प्रज्ञारूप शस्त्रे करी बेदतां जे नागना बीजो नाग कल्पाये नहीं, तेने प्रदेश कहीये. अथवा जेटलुं क्षेत्र पुजल परमाणुयें रुंध्यु तेने प्रदेश कहीये. एम ए चार राशि असंख्यातानी सरखी जाणवी. ए चार ते पूर्वोक्तमांहे नेलीयें, तथा वली बीजी व राशि नेलीयें, ते आगली गाथायें कहे . ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ४ ॥ विश्बंधश्सवसाया, अणुन्नागा जोग अ पडिनागा ॥ पुण्हय समाण समया, पत्तेअ निगोअए खिवसु ॥ ५ ॥ अर्थ- विश्बंधद्यवसाया केप तथा वली पांचमा कर्मनी स्थितिबंधनाअध्यवसायस्थानक पण असंख्याता बे. ते केम तो के; मोहनीय कर्मनो जघन्य स्थितिबंध, अंतर्मुहूर्त्तनो . ए डेखो संज्वलना लोजनी स्थितिबंधनी अपेक्षायें लेवो. ते अंतरमुहर्त्तने एक, बे, त्रण, ए रीतें समय वधारतां अधिक करतां यावत् सीत्तर कोमाकोमी सागरोपमनी उत्कृष्टी स्थिति पर्यंतना जेटला समय होय, तेटला मोहनीय कर्मना स्थितिस्थानक होय, तिहां एकेक स्थिति स्थानकें वली कषायनी तीवमंदतादिकृत नेदें एवा लोकाकाश प्रमाण असंख्याता अध्यवसाय स्थानक होय. अध्यवसाय एटले कषायोदयने तरतम नेदें जे जीवनो अशुभखनावविशेष, ते अध्यवसाय कहीये. ते असंख्याता होय, जे नणी मोहनीयनी स्थिति को जघन्य, कोश् तीव्र, अध्यवसायें बांधे, कोश तीव्रतर अध्यवसाय तथा मंद, मंदतर अध्यवसायें पण बांधे, तेथी एकेक स्थितिस्थानक दी असंख्यातां अध्यवसायस्थानक होय. ए पांचमी राशि पण तेमध्ये नेलीये. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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