________________
UG षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ . अर्थ-हवे ए औपशमादिक पांच नावना विकसंयोगें दश नंग अने त्रिकसं. योगें दश जंग तथा चतुःसंयोगें पांच नंग अने पंचसंयोगें एक नंग, मलीने बवीश नांगा थाय. ए वीश सान्निपातकना नेद थाय. ते माहेला उ नेद जीवने विषे होय, तेमांत्रण नेद तो चार गति आश्री तेना चार त्रिक बार नेद थाय. अने त्रण बीजा होय. एम मूलनंग ब होय. बाकी सन्निपातना वीश नंगनो तो संजव न होय, शेष बनो संजव होय, ते न जंगना वली उत्तर नेद, गति श्राश्री पंदर थाय, ते कही देखाडे बे.
ते मांहे एक त्रिकसंयोगी दशमो जंग, तेना चनगईसु के चार गति श्राश्री चन के चार नेद थाय. ते कही देखाडे जे. जे जणी मनुष्यनी गतिमां मनुष्यने मीसग के मिश्रजावें ज्ञान, श्रज्ञान अने दर्शनलब्धि एक अने परिणामुदएहि के पारिणामिकनावें जीवपणुं तथा नव्यपणुं, अने औदायिकत्तावें मनुष्यनी गति, वेश्या, वेद श्रने कषाय होय. ए प्रथम जंग जाणवो. .
तेमज देवताने पण मिश्रजावें ज्ञानादिक ने पारिणामिकनावें जीवत्वादिक तथा औदयिकनावें देवगत्यादिक देवप्रायोग्य, ए बीजो जंग जाणवो.
तेमज तिर्यंचमध्ये पण मिश्रनावें ज्ञानादिक अने पारिणा मिकनावें जीवत्वादिक तथा औदयिकनावें तिर्यंचगत्यादिक, ए त्रीजो जंग जाणवो.
तेमज नरकगतिमध्ये पण मिश्रनावें ज्ञानादिक ने पारिणामिकनावें जीवस्वादिक तथा औदयिकनावें नरकगत्यादिक, ए चोथो नंग जाणवो. एमत्रण नाव एक जीवने मले, तेथी ए त्रिकसंयोगीश्रा नांगा चार, मूल जंग एक, दशमो जाणवो.
तथा एहिज चउसु के चार गतिना सन्निया पंचेंप्रिय जीवने पूर्वोक्त त्रण नावनी साथें चोथो खरएहिं के० दायिकन्नाव मेलवीयें, .तेवारें चतुःसंयोगी नांगो थाय. एटले दायिक सम्यकदृष्टि जीवने दायिकन्नावें दायिकसम्यक्त्व अने मिश्रनावें ज्ञानादिक तथा औदयिकन्नावें मनुष्यगत्यादिक अने पारिणामिकन्नावें जीवस्वादिक, ए चार नाव मले, तेश्री ए चतुःसंयोगीना चार गतिनी अपेक्षायें सान्निपातिकना चार नांगा होय.
तेमज वली वा के० अथवा उवसमजुएहिचन के० उपशम सम्यक्त्वसहित करीयें, तेवारें औपशमिक सम्यकदृष्टिने औपशमिकन्नावें औपशमिकसम्यक्त्व अने मिश्रन्नावें ज्ञानादिक तथा औदयिकन्नावें मनुष्यगत्यादिक तथा पारिणामिकन्नावे जीवत्वादिक, ए चार गतिना जीवनें होय. तेथी एना पण चार जंग थाय.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org