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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४
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एम चार गतिना दें करी त्रण भावना बार जांगा थया, तथा केवलिपरिणामदयखइए के० केवलीने तेरमे ने चौदमे गुणठाणे कायिकजावें केवलज्ञानादिक नव होय, किनवें मनुष्यगत्यादिक त्रण होय, तथा पारिणामिकजावें एक जीवत्व होय, एम त्रिकसंयोगी जांगो एक होय. यहीं केवलीने घातीयां कर्म न होय, तेथी मिश्राव तथा औदारिकनाव, ए बेजाव न होय. ए त्रिकसंयोगीनो एकज नवम जांगो होय. अहींयां केवली मनुष्यज होय, परंतु शेष ऋण गतिमध्यें न होय. तेथी एकज जांगो होय. एवं तेर जांगा थया.
sa संयोगादिकना जांगा कही देखाडे ते. एक श्रपशमिक ने क्षायिक, बीजो औपशमिक ने मिश्र, त्रीजो औपशमिक ने चौदयिक, चोथो औपशमिक ने पारिणामिक, पांचमो क्षायिक ने मिश्र, बडो क्षायिक ने श्रदयिक, सातमो कायिक ने पारिणामिक, ए जांगो, सिद्धमां होय. श्रमो मिश्र ने औदयिक, नवमो मिश्र ने पारिणामिक, दशमो श्रौदयिक ने पारिणामिक, ए दश द्विकसंयोगी थया. ते मध्ये सातमो नांगो सिद्धनो वसतो जाणवो. शेष नव जंग शून्य बे.
ea त्रिसंयोगी जांगा कहेबे एक औपशमिक, क्षायिक ने मिश्र; बीजो औपशम, क्षायिक ने दयिक; त्रीजो उपशम, कायिक ने पारिणामिक; चोथो उपशम, मिश्र ने दकि; पांचमी श्रपशमिक, मिश्र ने पारिणामिक; बघो औपशमिक, औौदयिक ने पारिणामिक; सातमो क्षायिक, मिश्र ने श्रदयिक; प्राठमो कायिक, मिश्र ने पारिणामिक; नवमो कायिक, औौदयिक ने पारिणामिक, ए केवलीने होय. दशमो मिश्र, श्रोदयिक ने पारिणामिक, ए जांगो, चार गतिना जीवनें होय. ए त्रिसंयोगी दश जांगा थया. तेमध्यें नवमो जांगो केवलीनो, अने दशमो जांगो, चार गतिना जीवनो, ए बे जांगा वसता ते विना शेष श्राव जंग शून्य बे.
हवे चतु:संयोगी जांगा कहे बे. एक औपशमिक, क्षायिक, मिश्र ने औदयिक, ए शून्य बे. बीजो औपशमिक, क्षायिक, मिश्र अने पारिणामिक, ए पण शून्य बे. श्रीजो औपशमिक, क्षायिक, औदयिक अने पारिणामिक, ए पण शून्य बे. चोथो पशमिक, मिश्र, औदयिक ने पारिणामिक, ए जंगो चार गतिना उपशम सम्यदृष्टि जीवने होय. पांचमो क्षायिक, मिश्र, श्रदयिक अने पारिणामिक, ए जंगो चार गतिना कायिक सम्यकूदष्टि जीवनें होय.
पशम, क्षायिक, मिश्र, श्रदयिक ने पारिणामिक, ए पंच संयोगी सान्निपातिकनाव, उपशमश्रेणीयें वर्त्तता मनुष्यनें नवमे, दशमे अने अगी आरमे, ए त्रण गुणवणे होय. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ७० ॥
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