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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४ ५४९ अर्थ- आसुहुमं के० मिथ्यात्व गुणगणाथी मामीने दशमा सूक्ष्मसंपराय गुणगणा खगें संतुदएश्रवि के ज्ञानावरणीयादिक श्राप कर्मनो उदय तथा श्राप कर्मनी सत्ता पण होय, अने मोहविणुसत्तखीणंति के एक मोहनीय विना क्षीणमोहनामा बारमे गुणगणे सात कर्मनो उदय तथा सात कर्मनी सत्ता होय, तिहां वीतराग , ते जणी मोहनीयनो उदय न होय, सत्ता पण न होय. अने चरिमागे के० तेरभु सयोगी अने चौदमुं अयोगी, ए बेहां बे गुणगणे चल के नाम, आयु, गोत्र अने वेदनी, ए चार कर्मनो उदय तथा एज चार कर्मनी सत्ता पण होय, अने अहसंतेउवसंतिसंतुदए के० उपशांतमोहनामें अगीथारमे गुणगणे मोहनीयकर्मनो उदय नथी. तेथी मोहनीयविना सात कर्मनो उदय भने सत्ता पाठ कर्मनी होय, केम के अहीं मोहनीय उपशम्युं बे, तेथी एनो उदय नथी, परंतु सत्तायें बे. एम गुणठाणे उदयस्थानक तथा सत्तास्थानक कह्यां. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ६३ ॥ ॥ हवे गुणगणे उदीरणा स्थानक कहे जे.॥ जरंति पमत्ता, सगठ मीसह वेअ आउ विणा ॥ . बग अपमत्ताश् त, उ पंच सुहुमो पणु वसंतो ॥६॥ अर्थ-पमत्तता के० मिथ्यात्वगुणगणाथी मांगीने प्रमत्तगुणगणा लगें एक मिश्र गुणगणा विना शेष पांच गुणगणे सगरंति के श्राप कर्मनी उदीरणा होय. तेमां हेली श्रावलीयें श्रायुःकर्मनी उदीरणा न होय, तेवारें शेष सात कर्मनी उदीरणा होय तथा मीसह के मिश्रगुणगणे काल न करे, तेथी आयुनी अंत्यावलिका पण तिहाँ न होय, तेथी तिहां आठ कर्मनोज उदीरक होय. अहीं नदीरणास्थानक श्राग्नुं जाणवू, अने अपमत्ताश्त के अप्रमत्त, अपूर्वकरण, अने अनिवृत्ति, ए त्रण गुणठाणे वेअथाजविणा के एक वेदनीय अने बीजु श्रायु, ए बे कर्मनी उदीरणा न होय.ते विना शेष बग के कर्मनो उदीरक न कर्मनी उदीरपायें होय. अहीं वेदनीय भने आयु, ए बेनी उदीरणा न होय, केवल उदयेंज होय, तथा उपंचसुद्धमो के सूक्ष्मसंपराय दशमे गुणगणे आवलीमात्र रहे, तिहां लगें पण कर्मनी उदीरणा होय, अने बेहली थावलीयें मोहनीयनी पण उदीरणा टले, तेवारें मोहनीय विना शेष पांच कर्मनी उदीरणा होय, माटें बे उदीरणानां स्थानक होय, अने पणुवसंतो के उपशांतमोहनामा अगीआरमे गुणगणे मोहनो उदय नथी,माटें एनी उदीरणा पण न होय. शेष ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, नाम, गोत्र अने अंतराय, ए पांच कर्मनी उदीरणानुं स्थानक होय॥इति समुच्चयार्थः॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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