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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४
५३ए साथै गुणतां बसें ने उपन्न नांगा पांच बंधहेतुना थाय, तथा जय जेलतां (२५६) अने जुगुप्सा नेलतां ( २५६ ), एम (५१५) नांगा, ब बंध हेतुना थाय अने जय तथा कुछा, बे नेलवाथी सात हेतुना (२५६) थाय. एम त्रण बंधहेतुस्थानकें (१०२४) जंग, सातमे अप्रमत्तगुणगणे थाय.
अपुवे के अपूर्वकरणनामें आठमे गुणगणे पुण के० वली अविठविधाहारा के० वैक्रिय अने आहारक, ए बे योग न होय, जेनणी श्रेणी, औदारिक शरीरी पडिवजे, पण वैक्रिय अने थाहारक शरीरी पडिवजे नहीं, माटें ए बे कहाढी नाखतां शेष संज्वलन चार कषाय, वेद त्रण, हास्यादिक उ तथा योग नव, एवं सर्व मली मुवीस के बावीश बंधहेतु उचे होय. तिहां पूर्वली पेरें जघन्य हेतु पांच होय.तेमा हास्यादि युगलने त्रण वेदसाथें गुणतांब जंग थाय, ते चार कषाय साथें गुणतां चोवीश थाय. ते नव योग साथे गुणतां बसें ने शोल थाय, तेमां जय नाखतां (२१६) तथा जुगुप्सा नाखतां पण (१६) थाय. एवं (४३) बंधहेतुना नांगा जाणवा. अने जय तथा कुछा, ए बे साथे नेलतां सात बंधहेतु थाय. तिहां नांगा ( १९६) एम सर्व मली पारसे ने चोश जांगा होय. तिहां बंधहेतुनां स्थानक, त्रण जाणवा ॥ इति समुच्चयार्थ ॥ ६॥
अब दास सोल बायरि, सुहुमे दस वेअ संजयण ति विणा ॥ खीणु वसंति अलोना, सजोगी पुबुत्त सग जोगा ॥६॥ अर्थ-ते बावीश बंधहेतुमाहेथी अबहास के हास्य एटले हास्यादिक उ नोकषाय, बादरसंपरायनामा नवमे गुणगणे न होय. तेथी शेष कषाय सात अने योग नव, एवं सोल के शोल बंधहेतु, बायरि के बादरसंपरायनामा नवमे गुणगणे उचे होय, अने जघन्यपदें एक जीवने बे बे बंध हेतुनां स्थानक होय. संज्वलनो कषाय एक तथा योग एक, एवं बे होय श्रने उत्कृष्ट एक वेद सहित त्रण होय. एम बे बंधस्थानक होय. तिहां कषाय चारने योग नव साथें गुणतां बे बंधहेतुना बत्रीशनंग थाय, तथा वली कषाय चार, त्रण वेद साथें गुणतां बार जांगा थाय. ते नव योग साथै गुणतां (१७) जंग थाय.ए बे विकल्पना मलीनेशरवाले एकसो चुम्मालीश नांगा होय.
सुहुमे के सूक्ष्मसंपराय नामा दशमे गुणगणे वेधसंजलणतिविणा के संज्वलनो क्रोध, मान अने माया, तथा त्रण वेद, एवं 3 बंधस्थानक विना शेष संज्वलनो लोज एक श्रने योग नव. एवं दस के दश बंधहेतु उचे होय. अने जघन्यपदें तो एक जीवने एक समयें बेबे बंधहेतु होय अने उत्कृष्टधी पण एक संज्वलन लोन
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