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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.
पूर्वोक्त श्राव मध्यें जय, कुछा छाने चार काय लीघे ( ६६०० ), जय ने पांच काय ली ( १३२० ), कुन्छा ने पांच काय लीधे ( १३२० ), ए त्रण विकल्पें थमें तेरहेतुना ( २४० ) जांगा याय.
पूर्वोक्त श्रवमांहे जय, कुष्ठा अने पांच काय लीधे चौद हेतुना ( १३२० ) जांगा था. एम पांचमे गुणठाणे ए साते विकल्पें थने ( १६३६०० ) जांगा थाय ॥ ५ ॥
विरइ इगार तिकसा, य व अपमत्ति मीस डुग र दिया ॥ चवीस पुछे पुण, डुवीस प्रविधि आहारा ॥ ६० ॥ अर्थ- पांच इंडियाने बहुं मन, ए व अविरति तथा पांच यावरनी अविरति, एवं अविरश्श्गार के अगी धार अविरति तथा तिक सायवज के० त्रीजा प्रत्याख्या. नावरण कषाय चार एवं पंदर बंधहेतु वर्जवा तेवारें शेष बवीश बंधहेतु, प्रमत्तगुणठाणे होय ने विशेषादेशें त्रण वेदमध्यें एक वेद, संज्वलनना चार कषायमध्ये पहेलो अथवा बीजो एक कषाय, हास्या दिक युगलमध्ये एक युगल, तेर योगमध्ये एक योग, ए पांच हेतु जघन्यपदें एक जीवने एक समयें होय, अने उत्कृष्टा सात होय, तिहां स्त्रीवेदें आहारक ने श्राहारक मिश्र, ए बे योग न होय, तेथी
वेद तेर योग साथै गुणतां उगणचालीश घाय, ते मांहेथी वे रूप काढीयें, तेवारें सामत्रीश रहे. तेने युगल साथै गुणतां चम्मोतेर थाय. तेने चार कषाय साथै गुणतां (२०६ ) जांगा, ए पांच बंधहेतुना थाय. तेमध्यें जय जेलतां पण ( २०६ ) थाय तथा कुछ जेलतां पण ( २०६ ), एवं (५२) व हेतुना जांगा थाय. छाने जय तथा कुछा, बे नेले सात हेतुना जांगा (२०६) थाय. एम सर्व मली त्रण विकल्पें थइने ( १९८४ ) जांगा, प्रमत्तगुणठाणे लाने. बंधस्थानक पांच, व घने सात, ए त्रण होय. पति के अप्रमत्तगुणगणे मी सडुगर दिश्रा के० आहारक मिश्र अने वैक्रियमिश्र, ए बे योग न होय. जेजणी आहारक तथा वैक्रियशरीर करवा मांडतां तेनी पर्याप्तियें पर्याप्तानें ए योग होय, तिहां तो लब्धि प्रयुंजवा जणी प्रमत्त होय, वलतो अप्रमत्तगुणठाणे यावे, तिहां ए वे मिश्रयोग न लाने. तेथी कषाय तेर अने योग अगीर, एवं चडवीस के० चोवीश बंधहेतु, उधें होय, अने विशेषादेशें एक जीवने एक समय जघन्यपढ़ें संज्वलनो एक कषाय, एक वेद, एक युगल ने rior योगमध्ये एक योग, एवं पांच होय. त्यां अगी चार योग त्रण वेद सायें गुणतां तेन्रीश थाय, तेमांथी स्त्रीवेदें श्राहारक न होय, ते जणी एक रूप कहाढीयें, वारें बनी रहे, तेने युगल साथे गुंणतां चोशह थाय. तेने संज्वलन चार कषाय
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