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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४ ५२३ त्तरपणे करीने जे शरीर करवा मांडे ते शरीरनुं बलवत्तरपणुं होय. ते माटें एने प्रारंजकालें तथा परित्यागका पण वैक्रियमिश्र अने आहारकमिश्र कह्यां.. तथा नगिदिसुसासाणो के सिद्धांतने विषे एकेजियमांहे सास्वादनपणुं नथी कडं. सास्वादनी जीव एकेजियमांहे न उपजे, अने कर्मग्रंथवाले एकेंजियमांडे सास्वादनपणुं कर्वा डे एनो हेतु कांश जणातो नश्री; जे सिद्धांतें स्पष्ट ना कही , ते कर्मग्रंथवाले श्रादह्यु ए तत्व, केवली जाणे. नेहा हिगयंसुश्रमयंपि के ए त्रण बोल सर्व सूत्रे मान्या पण एनुं अहीं ग्रहण नथी कडे. इत्यर्थः॥ __तथा वली अहींयां गाथामां तो नथी कडं पण एवी रीतेंज सिझांतमाहे मिथ्यात्वादिक त्रण गुणगणे अवधिदर्शन अनिश्चयपणे कडं बे, केम के विनंगे मिथ्यात्वज्ञानजणी वस्तुनो निश्चय न कह्यो. अवधिदर्शन नथी सामान्यावबोधजणी वस्तुनो निश्चय न होय तेथी ए बन्ने जूदा खरा, पण एकरूप जणी पूर्वोक्त त्रण गुणगणे ए बे उपयोग होय, एम कडं श्रने कर्मग्रंथने मतें चोथे गुणगणे सम्यक्दृष्टिने अवधिदर्शन होय, पण प्रथमना त्रण गुणगणे अवधिदर्शन न होय एम कह्यु, अने श्रीनगवती, पन्नवणा तथा जीवा जिगमप्रमुख सूत्रमाहे पहेला गुणगणाथी मांगीने बारमा गुणगणा सुधी अवधिदर्शन होय, एम कडं बे. अने अहीं कर्मग्रंथने मतें विघ्नंगानीने अवधिदर्शन न होय, एम मानीने चोथा गुणगणाथी बारमा पर्यंत अवधिदर्शन होय एम कर्यु. . तेमज वली सिद्धांतने मते ग्रंथिनेद करतां, प्रथम दायोपशमिक सम्यक्त्व पामे अने कर्मग्रंथना मतें प्रथम औपशमिक सम्यक्त्व पामे. एम मतन्नेद ले. पण अहीं सिद्धांतमत श्राश्रयो नथी, अने कार्मग्रंथिक मत आश्रयो बे. माटें एमां का विरोध न जाणवो ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ५ ॥ हवे चौद गुणगणे लेश्या कहे . जे जणी उपयोग सुधी लेश्या सुधीयें होय ते जणी उपयोग कह्या; पनी खेश्या कहे . ॥ अथ गुणस्थानेषु वेश्यामाह ॥ सु सवा तेन तिगं, इगि बसु सुक्का अजोगि अलेसा ॥ बंधस्स मिड अविरइ, कसाय जोगत्ति चन देक॥ ५३ ॥ अर्थ-उसु के मिथ्यात्वधी मामीने प्रमत्तलगें ब गुणगणानेविषे सबा के० सर्व कृमादिक बए लेश्या होय, तेजतिगं के तेजोलेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या, ए त्रण खेश्या. इगि के एक अप्रमत्तनामें सातमुं गुणगणुं, तिहां एक पूर्वप्रतिपन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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