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________________ · षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४ ५०ए धारीने तथा मिथ्यात्वीने वाटें जातां श्रचक्षुदर्शन अने अवधिदर्शन, ए बे होय. एवं सर्व मली दश उपयोग पामीये. - तिन्निदंसचउनाण के० १ चकुदर्शन, ५ अचकुदर्शन, ३ अवधिदर्शन, ५ मतिज्ञान, ५ श्रुतज्ञान, ६ अवधिज्ञान, ७ मनःपर्यवज्ञान, एवं सात उपयोग, ते थग्यारमार्गपाहारें होय तेनां नाम कहे . चउनाण के केवलज्ञान विना चार ज्ञान मार्गणा छार तथा संजम के चार संयममार्गणा एटले एक सामायकचारित्र, बीजुं दोपस्थापनीयचारित्र, त्रीजु परिहार विशुद्धिचारित्र, अने चोथु सूक्ष्मसंपरायचारित्र, ए चार मार्गणा, एवं श्राप मार्गणाधार तथा उवसम के नवमी उपशमसम्यक्त्व मार्गणा, वेश्रगे के० दशमुं वेदक एटले दायोपशमिक सम्यक्त्व, ए बे सम्यक्त्वमार्गणा उहिदंसेश के अगीथारमी अवधिदर्शन मार्गणा. एवं अगीार मार्गणाधारने विषे चार ज्ञान अनेत्रण दर्शन, ए सात उपयोग पामीये. अहींयां अवधिदर्शन मार्गणाने विषे मति अज्ञानादिक त्रण श्रज्ञान सिद्धांत सम्मत , पण कशा कारणे पूर्वाचार्य निषेध्या ते नथी जणातां ? अन्यथा दश उपयोग होय. अहींयां योगमार्गणा झारे मतांतर देखाडे २ ॥ इति समुच्चयार्थः॥ ॥हवेत्रण योग मार्गणा विषे जीवस्थान, गुणस्थान, योग अने उपयोग श्राश्रयीने मतांतर कहे जे.॥ पूर्वे योग विवया ते अन्ययोग सहित श्रथवा उपयोग रहित एम सामान्य कह्या. शहां अन्य योगांतरजाविनी नूतवत् उपचारनान्येन मुख्यतारहित योगें स्वमुख्यतायें १ जीवस्थान, ५ गुणस्थान, ३ योग, ४ उपयोग, ए चार बोल विवरी कहे . दो तेर तेर बारस, मणे कमा अउ च च वयणे ॥ चन पण तिन्नि काए, जिअगुण जोगोवांगन्ने ॥ ३० ॥ श्रर्थ-त्यां वचनयोग अने काययोग रहित केवल एकज मनयोगने विषे संझी पंचेंजिय पर्याप्तो, थने अपर्याप्तो, ए दो के बे जीवनेद होय, अने एने चौदमा गुणगणा वगर बीजा तेर के० तेर गुणगणां होय, तथा एने कार्मण अने औदारिकमिश्र, ए बे योग विना बीजा तेर के तेर योग होय, जे नणी केवलसमुद्घातावस्थायें प्रयोजनने अनावें त्यां मनोयोग न होय. तथा उपजतां अपर्याप्तावस्थायें पण मनोयोगन होय, अने कामण तथा औदारिकमिश्र तो तिहांज होय. ए माटें एबे योग मनोयोगीने न होय, अने एमनोयोगीने विषे उपयोग बारस के बार कमा के अनुक्रमें मणे के मनोयोगीने विषे पामीयें. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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