SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 532
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ५०७ लेखवा. जे जणी जिलाषारूप जाववेद बे ते तो नवमा गुणगणा सुधी बे. तिहां तो केवलज्ञान ने केवलदर्शन केम होय ? जे जणी ते केवल डिक श्रवेदीने होय ते जणी स्त्री पुरुषाकाररूप द्रव्यवेदें बार उपयोग संजवे. नयणेश्वर के० चतुदर्शन ने इतर एटले चतुदर्शन, पणलेसा के० शुहत्रेश्या तो प्रथम कही बे. बाकी कृमादिक पांच लेश्या, कसाय के० चार कषाय, एवं अगीआर मार्गणाद्वारें दस केवल डुगुणा के० केवलज्ञान ने केवलदर्शन ही न करतां बाकी दश उपयोग पामीयें, जे जणी ए अगीआर बोलें केवलज्ञान अने केवलदर्शन न होय. अहीं प्रथमनी लेश्या त्रण बडा गुणवाणा सुधी होय, अने पाबली बे लेश्या सातमा गुणठाणा लगें होय, अने कषाय दशमा गुणगण लगें होय, तथा चक्षु चतु, ए वे बारमा गुणठाणा लगें होय. पण तेरमे गुणठाणे ए अगर मार्गणामांहेलो को नथी अने केवल द्विक तो तेरमे गुणापेंज होय ते जणी ए वे उपयोग न होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३४ ॥ चरिंदि प्रसन्ना ना, एा इदंस इग बिति यावरि अचरकु ॥ ति नाण दंसण डुगं, अनाण तिगि नवमि डुगे ॥ ३५ ॥ अर्थ - चरिंदि के० १ चौरिंडियमार्गणा, सन्नि के० २ असंझी मार्गणा, ए बे मार्गाद्वारे अना के० मतिज्ञान श्रने श्रुतज्ञान तथा डुदंस के० चक्कुदर्शन, अने चतुदर्शन, एवं चार उपयोग होय केम के एने चक्षु बे तेथी चतुदर्शन होय. तथा इग बितिथावरि के० इंडियमार्गणामध्ये एकेंद्रिय, बेंद्रिय, तेंद्रिय, ए त्रण तथा कायमार्गणामध्यें पृथिव्यादिक पांचे यावर, एवं आठ मार्गणाद्वारें बे प्रथमनां अज्ञान अने एक अचरकु के० चतुदर्शन, एवं त्रण उपयोग होय. केम के एमने चतु नथी माटें. तिचनापदंसणडुगं के० त्रण अज्ञान तथा चतुदर्शन थाने चतुदर्शन, एवं पांच उपयोग व मार्गणाद्वारें होय ते मार्गणानां नाम कहे बे. अन्नातिगि के० त्रण अज्ञानमार्गणा अजब के० चोथी अव्यमार्गणा अने मिठडुगे के० पांचमी मिथ्यात्व तथा बही सास्वादन, एवं व मार्गणाद्वरें पांच उपयोग पामीयें, जे जी हां सम्यक्त्व न पामीयें, तेथी शेष सात उपयोग न होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३५ ॥ केवल डुगं निप्रडुगं, नव ति अनाणविणु खइ दंसण नाण तिगंदे, सि मीसि अन्नाण मीसंतं ॥ ३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only खाए || www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy