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षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ति अनाण नाण पण चन, दंसण बार जिअलखणुवउंगा ॥
विणु मण नाण केवल, नव सुर तिरि निरय अजएसु॥३३॥ · अर्थ-तिहां प्रथम बार उपयोगनां नाम कहे जे. तिअनाण के० मतिअज्ञान,
श्रुतश्रान अने विनंगज्ञान, ए त्रण अज्ञान मिथ्यात्वीने होय, अने नाणपण के १ मतिज्ञान, २ श्रुतझान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनःपर्यवज्ञान, ५ केवलज्ञान, ए पांच ज्ञान, सम्यक्दृष्टिने होय. ए श्राप साकारोपयोग अने चनदसण के अनाकारोपयोग ते दर्शन कहीयें; ते चार प्रकारें बे. १ चतुदर्शन, २ अचकुदर्शन, ३ अवधिदर्शन, ४ केवलदर्शन, ए चार सामान्यावबोध, एवं वारजिअलकणुवढंगा के बार उपयोग थया. उपयोग एटले वस्तुनुं परिछेदक प्रकाश, ते प्रत्ये जे उपयोगी होय ते नणी एने उपयोग कहीयें. ए जीवनुं लक्षण जीवस्वजाव चेतनारूप जाणवू. ते उपयोग बे नेदें . एक साकार, बीजो अनाकार, त्यां पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान, ए थाउने साकार कहीयें, तथा चार दर्शनने अनाकार कहीये. ए बार उपयोगनां नाम कह्यां. हवे ए बार जपयोग बाशह मार्गणाधारे विवरे बे. .. ए बार उपयोगमाथी विणुमणनाणकेवल के मनःपर्यवज्ञान अने केवलज्ञान अने केवलदर्शन, ए त्रण उपयोग विना शेष नव के० नव उपयोग ते सुरतिरिनिरय के सुरगति, तिर्यंचगति अने नरकगति, ए त्रण गतिमार्गणा तथा अजएसु के० असंयत एटले अविरति सम्यकदृष्टिमार्गणा, ए चार मार्गणाधारें होय, जे जणी ए चार मार्गणायें चारित्र न होय. तेथी मनःपर्यवादिक त्रण उपयोग पण न होय. शेष नव उपयोग होय. त्यां मिथ्यात्वीमांहे त्रण अज्ञान, अने अचलु तथा चतु ए बे दर्शन, एवं पांच उपयोग लाने. अने सम्यक्दृष्टि देवादिक चार मार्गणामध्ये त्रण ज्ञान, त्रण दर्शन, एवं बलाने. एक समयें जीवने एक उपयोग होय.पण एउघमात्र कह्या ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३३॥
तस जोअ वेअसुक्का, दार नर पणिदि सन्नि नवि सबे ॥
नयणे अरपण लेसा, कसाय दस केवल उगूणा ॥ ३४ ॥ अर्थ- तस के० १ त्रसकाय, जोश के त्रण योग, एवं चार. वेथ के त्रण वेद, एवं सात, सुक के० ७ शुक्ल वेश्या, श्राहार के ए आहारी मार्गणा, नर के० १० मनुष्यगति, पर्णिदि के० ११ पंचेंजियजांति, सन्नि के० १५ संझीमार्गणा, नवि के १३ जव्यमार्गणा, ए तेर मार्गणाद्वारे सवे के० सर्वे बारे उपयोग पामीये. जे नणी ए तेर बोल तेरमा गुणगणा सुधी होय. अहीं श्रां त्रण वेद जे कह्या डे, ते अव्यरूप
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