________________
षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४
५०५ अने थाहारकना बे योग, ए चार योग न लाने. केम के परिहार विशुद्धिचारित्रवालाने उत्कृष्टुं श्रुत नव पूर्व पर्यंत होय, अने थाहारक शरीर तो चौद पूर्व विना न होय. वली वैक्रियलब्धि प्रयुंजवानी ए चारित्रेधाज्ञा नथी तथा अपर्याप्तावस्थार्ये कार्मण अने
औदारिकमिश्रयोग होय, तिहां चारित्र न होय, अने केवलसमुद्घातमध्ये तो यथाख्यात चारित्र होय, तेश्री समुद्घात मिश्र तो यथाख्यात चारित्रे होय, तेथी ते स. मुद्घातनी अपेक्षायें पण ए बे योग ए चारित्रं न संजवे, शेष नव योग लाने. एवं जंगणशाठ मागेणाद्वारे योग कह्या.
तेउमीसिसविडवा के० तेहीज पूर्वोक्त नव योगने वैक्रिययोगसहित करी तेगरें दश योग थाय, ते सम्यक्त्व मार्गणामध्ये एक मिश्रसमकितमार्गणायें होय, तिहां वैक्रिययोग देवता तथा नारकीने मिश्रगुणवाणुं होय तेने वैक्रिययोग होय तथा मिों काल न करे, तेथी अपर्याप्तावस्थायें मिश्र न होय, तेथी वैक्रिय मिश्रयोग न कह्यो तथा वैक्रिय करवा समय मिश्रलब्धि न होय अथवा बीजे कशे कारणे वैक्रियमिश्रयोग नथी कह्यो, श्रने बेहु थाहारकयोग तो बे चारित्र नथी ते जणी न होय, तथा मिश्रगुणगाणे जीव अपर्याप्ता न होय, तेथी औदारिकें मिश्रकामण योग पण न होय. एवं शाठ मार्गणाधार योग कह्या.
देसेसविउविडुगा के देशविरतिमार्गणायें प्रथम कहेला नव योगने वैक्रिय तथा वैक्रिय मिश्र, एबे योगेंसहित करियें तेवारें अगीवार योग होय, तिहां वैक्रियमिश्र ए बे योगें लब्धि प्रयुंजे बे, ए अपेक्षायें लीधा, केमके देशविरति अंबमादिकें लब्धि प्रयुंजी ने, माटें अगीवार योग होय, शेष चार योग न होय. एवं एकशठ मार्गणाछारें योग कह्या. ___ सकम्मुरलमीसबहखाए के ते पूर्वोक्त चार मनना श्रने चार वचनना, एवं आठ योग तथा नवमो औदारिककाययोग, तेने कार्मण अने औदारिकमिश्र ए बे योगें सहित करतां अगीधार योग यथाख्यातचारित्रमार्गणायें होय. जे जणी ते चारित्रि लब्धि प्रयुंजे नही, तेथी तेने आहारकना बे तथा वैक्रियना बे, एवं चार योग न होय, अने औदारिकमिश्र तथा कार्मण, ए बे योग केवलसमुद्घातमाहे होय, केमके समुद्घातनी वखते ए चारित्र जे. एवं बाश मार्गणायें योग कह्या. इति समुच्चयार्थः ॥ ३ ॥
हवे बाशमार्गणाझारें बार उपयोग कहे . योगने शुज अशुनपणे शुनाशुन उपयोग होय ते योग निवर्ते, तेवारें आत्मप्रदेशनी चलाचल मटे तेवारें शुकोपयोगी जीव होय, माटें हवे मार्गणाने विषे उपयोग कहे जे ॥ अथ मार्गणापूपयोगानाह ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org