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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ४ए३ होय अने एकगणीयु मिथ्यात्व वेदे, तेवारें सम्यक्त्व अधिक होय तथा जे मते सम्यक्त्व विना सर्व अज्ञानी जीव कह्या, ते मते ए त्रण अज्ञानने त्रण गुणगणां लाने, जे जणी मिश्रदृष्टि पण अज्ञानी , मिश्रगुणगणे पण अर्धं मतिज्ञान अने अधैं मतिअज्ञान तथा अर्धं श्रुतदान, अने अधुं श्रुतअज्ञान होय, तथा अधु विनंगज्ञान अने अर्धं श्रवधिज्ञान होय तथा पूर्ण मतिमझान अने पूर्ण विनंग. झान, तेवारें पहेले, बीजे गुणगणे त्रण अज्ञान होय. वली कोश्क श्राचार्य कहे बे के मिश्रगुणगाणे मिथ्यात्व घणुं होय तेवारें मिश्रगुणगणे त्रणे अज्ञान होय, ए बे मत बे. पडी साचं खोटुं तो ज्ञानी जाणे. एवं गणत्रोश मागेणा थई. प्रथमनां बार गुणगणां एटले मिथ्यात्वथी मामीने बारमा दीणमोह गुणगणा सुधीनां बार गुणगणां, चतुदर्शन तथा अचकुदर्शन, ए बे मार्गणा छारें होय. जे जणी ए बे दर्शन, दायोपशमिकनावें होय अने आग बे गुणगणे दायोपशमिक नाव नथी. तिहां दायिकत्नाव होय अने श्रागले बे गुणगणे केवलीने केवलदर्शन अने केवलझान डे पण केवलीने इंजियजन्य ज्ञान तथा दर्शन, ए बेहु न होय. केवलीनुं पारमार्थिक प्रत्यक्ष सकल ज्ञान बे, ते नणी ए बेहु दर्शनें बार गुणगणां पहेला संजवे. अहीं श्रन्नेदनयें जीवदर्शन जाणवू. एवं एकत्रीश. यथाख्यातचारित्र मार्गणायें बेहबां चार गुणगणां होय एटले उपशांत मोह, दीणमोह, सयोगी अने अयोगी, ए चार गुणगणां होय, तिहां श्रगीश्रारमे गुणगणे कषायोपशमश्री यथाख्यातचारित्र औपशमिकनावें होय, अने शेष त्रण गुणगणे कषायदय थयाथी दायिकनावें यथाख्यातचारित्र वीतरागचारित्र होय. श्रही श्रां पण चारित्रवंतने अनेद विवदायें लीधा. एवं बत्रीश मार्गणा छारें गुणगणां कह्यां. ॥२३॥ मणनाणि सग जयाई, समश्य अचन उन्नि परिहारे ॥ . केवल उगि दोचरिमा, जयाइ नव मसु उदि उगे ॥२४॥ अर्थ- मणनाणिसगजयाई के मनःपर्यवज्ञानमार्गणायें प्रमत्तादिक सात गुणगणां होय, समश्यअचल के सामायिक अने दोपस्थापनीय चारित्रे चार गुणगणां होय. परिहारेकुन्नि के परिहार विशुछिचारित्रे बे गुणगणां होय. केवलागिदोचरिमा के केवलज्ञान अने केवलदर्शन, ए बे मार्गणायें बे नेवां गुणगणां होय, तथा अजयाश्नव के अविरत्यादिक नव गुणगणां मसु के मतिज्ञानमार्गणाने विषे तथा हिपुगे के अवधिज्ञान अने अवधिदर्शनने विषे जाणवां. ॥३. त्यदरार्थः ॥२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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