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________________ पए षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ब्धि त्रसगतियें त्रस कहेवाय तेने, तथा अजव्यमार्गणायें, ए त्रणे मार्गणायें, मिथ्यास्वगुणगणुं होय, जे जणी ए मध्ये को जीव, सम्यक्त्व वमतो पण न उपजे, तथा अजव्यनें तो सम्यक्त्व स्पर्शेज नहीं, तेथी अजव्यने सास्वादन गुणगणुं न होय. एवं अढार मार्गणाधारें गुणगणां कह्यां. ॥॥ वेअ ति कसाय नव दस, लोने चन अजउ ति अनाण तिगे ॥ बारस अचस्कु चस्कुसु, पढमा अहखाइ चरिम चऊ ॥ २३ ॥ अर्थ- वेअतिकसाय के त्रणे वेद,अनेक्रोध, मान, माया, एत्रणे कषाय, नव के नव गुणगणां होय, अने दसलोने के लोनमार्गणायें दश गुणगणां होय. चनअजश् के० चार गुणगणां श्रविरतिमार्गणायें होय. उतिथनाणतिगे के बे तथा त्रण गुणगणां अज्ञानत्रिकें होय. तथा बारसथचस्कुचरकुसुपढमा के० अचकुदर्शनीय श्रने चकुदर्शनीय जीवने पढमा एटले प्रथमनां बार गुणगणां होय, अने श्रहखाश्चरिमचऊ के यथाख्यातचारित्रं बेहवां चार गुणगणां होय. ॥ २३॥ स्त्री, पुरुष अने नपुंसक, ए त्रण नाववेद तथा क्रोध, मान थने माया, ए त्रण कषाय, एवं ब प्रकृतिना उदयवंत जीवने प्रथमनां नव गुणगणां होय, केम के नव गुणगणां पर्यंत त्रण कषायनो उदय डे, तेथी एणे औदयिक पर्यायने नव गुणगणां लाने. एवं चोवीश मार्गणा थई. लोजकषायमार्गणायें सूमसंपरायगुणगणुं होय, जे जणी मिथ्यात्वथी मामीने दशमा गुणगणा सुधी लोचनो उदय , तेथी लोजी जीवने दश गुणगाणां होय, बीजा गुणगाणां वेद अने कषायने विषे न संचवे. पहेले गुणगणे अनंताबंधीयाने सरखो संज्वलनो क्रोध,त्रीजे मिश्रगुणगणे अविरति अपच्चरकाणियाने सरखो संज्वलनो क्रोध, देशविरतिगुणगणे पच्चरकाणीयाने सरखो संज्वलनो क्रोध तथा प्रमत्तगुणगणाथी मामीने संज्वलनाने सरखो संज्वलन होय. एवं पञ्चीश. - असंयति एटले विरति रहित जे जीव, तेने विषे मिथ्यात्वथी मामीने श्रविरति सम्यक्दृष्टि सुधीनां चार गुणगणां लाने, जे जणी पांचमे गुणगणे देशविरति होय, अने उपरला नव गुणठाणे सर्व विरति होय पण त्यां अविरति नहीं होय माटे. बबीश. मतिबझान, श्रुतबझान अने विनंगज्ञान, ए त्रण मार्गणायें जो सम्यक्त्वांश मिश्रगुणगणे अधिक होय तो तेवारे त्रण अझानने बे गुणगणां होय, अने मिश्रगुपगणे मिथ्यात्वांश अधिक होय तो अज्ञान घणुं होय, तेवारें मिथ्यात्व अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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