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________________ षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ ដូចៗ पांच थावरने विषे पण जीवना चार नेद लाने अने इंजिय छारमाहेला एकेजिय मध्ये पण जीवना चार नेद लाने, ते चार नेदनां नाम कहे . एक सूक्ष्मएकेंजियपर्याप्तो, बीजो सूक्ष्मएकें जियश्रपर्याप्तो, तथा त्रीजो बादरएकेजियपर्याप्तो, चोथो बादरएकेंजियअपर्याप्तो, ए रीते पांच स्थावरकायमार्गणा तथा बही एकेजियमार्गणा, ए मार्गणाधारे पूर्वोक्त चार जीवनेद होय. ___ ए रीतें पूर्वली गाथामां तेर मार्गणा छारें जीवनेद कह्या अने आ गाथामां अहीं सुधी मनुष्यगतिमार्गणा तथा तेजोलेश्यामार्गणा, पांच स्थावरकायमार्गणा अने एक एकेजियमार्गणा, एम सर्व मली एकवीश मार्गणायें जीव नेद कह्या. ___ बावीशमी असंझी मार्गणायें बार जीवजेद होय. तेनां नाम कहे जे. सूक्ष्मएकेजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, बादरएकेंजिय पर्याप्ता श्रने अपर्याप्ता, बेंजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, तेंजिय पर्याप्ता श्रने अपर्याप्ता, चौरिजिय पर्याप्ता श्रने अपर्याप्ता, असंही पंचेंजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, ए बार नेद असंझी मार्गणायें होय, जे जणी एउँने जव्यमन न होय अने जावमन होय. ते जणी असंझी कहीये. ए बावीश मार्गणा छारें जीवनेद कह्या. त्रेवीशमी बेइंडिय मार्गणायें बेंजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, ए बे जीवजेद पामीये. चोवीशमी तजियमार्गणायें तेंज्यि पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, ए बे जीवजेद पामीयें, पच्चीशमी चौरिंजिय मार्गणायें चौरिंघिय पर्याप्ता अने चौरिंजिय अपर्याप्ता, ए बे जीवनेद पामीयें. ॥ १७ ॥ दसचरिम तसे अजया, हारग तिरि तणु कसाय 5 अनाणे ॥ पढम तिलेसा नविअर, अचकु, नपु मिबि सवेवि ॥ १ ॥ अर्थ-दसचरिम के दश नेद बेसा, तसे के० त्रसकायमार्गणायें पामीयें तथा अजयाहारग के अविरतिमार्गणा, थाहारकमार्गणा, तिरि के तिर्यंचगति, तणु के काययोगमार्गणा, कसाय के चार कषायमार्गणा, मुथनाणे के बे अज्ञानमागणा, पढमतिलेसा के प्रथमनी त्रण लेश्या मार्गणा, नविथर के० जव्यमार्गणा अने इतर ते अजव्यमार्गणा, अचस्कु के थचकुदर्शनमार्गणा, नपु के नपुंसकवे. दमार्गणा, मिलि के० मिथ्यात्वमार्गणा, एटली मार्गणायें सवेवि के० सर्व चौदे जीवनेद पामीये. ॥ इत्यदरार्थः ॥ १॥ सूक्ष्मएकें जिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता तथा बादरएकेंजिय पर्याप्ता अने अपर्याप्ता, एवं चार नेद विना बाकी चौदमाथी चरम एटले ब्रह्मा दे इंडियादिक दश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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