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षडशतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ मरण पामीने अनुत्तरवासी देवता थाय. ते अपेक्षायें बीजा संझी अपर्याप्ता पण खेवा. अहीं कोई कहे जे संज्ञी अपर्याप्ताने उपशम सम्यक्त्व केम होय ? तेनो उत्तर जे अहीं करण अपर्याप्ता लेवा पण लब्धि अपर्याप्त। न लेवा.
वेदक सम्यक्त्वे, पद्मलेश्यायें, शुक्ललेश्यायें तथा संझी मार्गणायें, ए चार मार्ग. णायें तथा पूर्वली नव, एवं तेर मार्गणास्थाने सन्निगं के संझीयाना बे नेद होय, एटले पर्याप्तो अने अपर्याप्तो ए बे नेद होय, त्यां अपर्याप्ता उपजती वेलायें करणथी लेवा जे जणी लब्धिअपर्याप्ता तो तथाविध विशुछिने बनावें ए तेर मार्गपाहारें न पामीयें. ए तेर मार्गणायें जीव नेद कह्या. अहीं वेदक अने दायोपशमिक सम्यक्त्व एकज जे. ए तेर मार्गणा थ. ॥ १७ ॥
तमसन्नि अपजाजुअं, नरे सबायर अपज तेकए ॥
थावर शगिदि पढमा, चन बार असन्नि उछ विगले ॥ १७ ॥ अर्थ-तं के० ते बे नेद असन्निश्रपङाजुओं के असंझीया लब्धि अपर्याप्ता सहित ए त्रण नेद, नरे के मनुष्यगतिने विष होय, सवायरअपजातेऊए के ते बे बादर अपर्याप्ता सहित त्रण भेद तेजोलेश्यामांहे होय. अने थावरगिदि के पांच स्थावरकाय अने इंजियमार्गणामांहेली एकेजिय, ए उ बोलने विषे पढमाचल के प्रथमना चार नेद जीवोना होय. तथा बारअसन्नि के प्रथमना बार नेद असंझीमां होय, अने ऽऽविगले के बेबे जीवनेद प्रत्येक विकलेंजियमांहे होय. ॥ इत्यक्षरार्थः ॥ १७॥
ते संज्ञीपर्याप्तो अने संझी अपर्याप्तो, ए बे नेद अने असंझी लब्धि अपर्याप्तो, एत्रण नेद मनुष्यगतिमाहे पामीयें, जे जणी मनुष्यना मल मूत्रादिक चौद स्थानकें संमूमि मनुष्य, असंख्य उपजे, ते अपर्याप्ताज मरण पामे. पण पूरी पर्याप्ति न करे. गर्ज़ज बे नेदे होय, ते गर्भज मनुष्य सन्नीथाना बे नेद तथा बादर एकेंजिय अपर्याप्ता सहित त्रण जीव जेद ते तेजोलेश्यायें होय. जे नणी बादर एकेंजियमांदेखा पृथ्वी, अप् अने वनस्पतिमध्ये देवता लेश्या सहित अवतरे बे. तेनी अपर्यातावस्था होय तेवारें तथा सन्निधाने पर्याप्ता अपर्याप्ता ए बेहु अवस्थायें तेजोलेश्या होय. अहींां पण करणअपर्याप्ता बेवा.
हवे बकायमार्गणा हारने विषे एक त्रसकाय मार्गणा रहेवा दीजें, ते मूकीने बाकीनी पांच स्थावर कायमार्गणा अने इंजिय हारने विषे बेंजिय, तेंजिय, चौरिंप्रिय अने पंचेंजिय रहेवा दीजें, बाकी एकेजियनी एकज मार्गणा लहीये, तेवारें
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