SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ មនុច बंधस्वामित्वनामा चतुर्थ कर्मग्रथं. ४ हवे उक्तमार्गणादिक, सहु जीवने होय, ते जणी त्यां प्रथम जीवनेदें प्रतिहार कहेवाने अर्थे गाथा कहे . नमिअ जिणं वत्तवा, चनदस जिअगणएसु गुणग णा॥ जोगुवउंगो लेसा, बंधोद दीरणा सत्ता ॥२॥ पागंतरं ॥ चनदस जिअगणेसु, चन्दस गुणगणगाणि जोगाय ॥ नवउंग वेस बंधो, दउंदीरण संत अपए ॥२॥ अर्थ-नमिअजिणं के जिनने नमस्कार करीने वत्तवा के वक्तव्या एटले ए बोल कहेवा. चन्दसजिगणएमु के० चौद जीवस्थानकनेविषे गुणगणा के एक गुणगणां, जोग के बीजायोग, नवगो केन्त्रीजा उपयोग, खेसा के चोथी वेश्या, बंध के पांचमो मूलप्रकृतिनो बंध,नद के बहो उदय, दीरणा के सातमी उदी रणा, सत्ता के श्रापमी सत्ता, ए आठ घार कहीशुं ॥इति समुच्चयार्थः ॥२॥ - हवे पागंतर गाथानो अर्थ कहेजे. चउदस जियगणेसु के दश अव्यप्राण अने ज्ञानादिक नावप्राणने धरे, तेने जीव कहीये, ते जीवना चौद नेदने विषे गुणगणादि आठ प्रतिछारनो विचार कहीशुं. ते आठ प्रतिहारनां नाम कहे . प्रथम चउदसगुणगणगाणि के० मिथ्यात्वादिक चौद गुणगणां माहेलां कयां गुणगणां कया जीवस्थानकें होय ? ए प्रथम प्रतिहार. बीजो अर्थ, गुण जे ज्ञानादिक तेनी शुद्धि अविशुछिनां गम, अध्यवसाय विशेष ते कहीशु. बीजो जोगाय के मन, वचन अने काया संबंध जन्य जीव, एटले जे प्रदेशनुं चलाचलकरणवीर्य ते योग कहीये, ते कया जीव स्थानकें केटला योग होय ? ते कहीशु. ए बीजुं प्रतिहार, त्रीजें जवढंग के उपयोग जे जीवन बोधस्वरूप, ते कया जीवस्थानकें केटला होय, एत्रीजु प्रतिहार. चोथु लेस के० कृक्षादिक वेश्या मांहेली कया जीवस्थानकें केटली होय? ते चोडुं प्रतिहार. पांचमुं बंध के कया जीवने केटलां बंधस्थानक होय? ते पांचमुं प्रतिधार. बहुं उद के कया जीवस्थानकें केटलां उदयस्थानक होय? ते बहुं प्रतिहार. सातमुं दीरण के कया जीवस्थानकें कयां कयां उदीरणास्थानक होय ? ते सातमुं प्रतिद्वार. आठमुं संत के कया जीवने कया मूल पाठ कर्ममांदेला केटला केटला कर्मनी सत्ता होय ? ते श्रावमुं प्रतिहार. अहपण के ए श्राप प्रतिहार चौद जीव नेदछारें विवरशु.॥इति समुच्चयार्थः॥२॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy