SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधस्वामित्वनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ.४ ४६ए एमज ए जीवनेदगति इंडियादिक ने करी जिन्न करतां चतुर्विध पंचविधादिक होय, तेनी मार्गणा विचारणानां मूल द्वार चौद , तेने विषे न प्रतिधार कहे . ॥ तह मूल चनद मग्गण, गणेसु बासहि उत्तरेसु च ॥ जिअ गुणजोगु वऊंगा, लेस प्पबहुं च उहाणा ॥३॥ पागंतरं ॥ चनदस मग्गणगणेसु, मूलयएसु बिसहि इ अरेसु ॥ जिअगुणजोगुवउंगा, लेसप्पबहुत्तउत्तहाणा ॥ ३ ॥ अर्थ-तह के तेमज वली मूलचउदमग्गणगणेसु के मूल चौद मार्गणास्थानकने विषे अने वासहिउत्तरेसुच के उत्तर बाशठ मार्गणा स्थानने विषे जिअ के एक जीवनेद, गुण के बीजां गुणगणां, जोग के त्रीजा योग, उवजेगा के चोथा उपयोग, लेस के पांचमी लेश्या, अप्पबहुंच के बहुं अल्पबहुत्व, बहाणा के ए बस्थानक कहीशु.॥३॥ हवे पागंतर गाथानो अर्थ कहेडे. मूलपएसु के० मूलपदें, चउदसमग्गणगणेसु के गति, इंडियादिक मूल चौद मार्गणानां स्थान तेने विषे तथा बिसहिअरेसु के० गत्यादिक मूलमार्गणाना अवांतर नेद बाशठ, जेम गतिचार, इंजिय पांच, इत्यादिकनां नाम आगल ग्रंथकर्ता पोतेंज कहेशे. तेथी अहींयां नथी लख्यां, ते कर का मार्गणायें केटला केटला जिथ के जीवनेद होय ? ते कहेवानुं प्रथम हार, तथा गुण के कश् क मार्गणायें केटलां केटलां गुणगणां होय ? ते कहेवानुं बीजुं हार, तथा जोग के कर कर मार्गणायें केटला योग होय ? ते कहेवानुं त्रीजुं हार, तथा उवजेगा के कर कर मार्गणायें केटला केटला उपयोग होय ? ते कहेवार्नु चोथु छार, तथा लेस के कश कर मार्गणायें केटली केटली लेश्या होय ? ते कहेवानुं पांचमु छार, तथा अप्पबहुत्त के सहु मार्गणायें कोण अल्प, कोण बहु ? ए कहेवानुं हुं छार, हाणा के ए ब विचारस्थानक बाशठ मार्गणायें विवरी कहीशुं॥ इति समुच्चयार्थः ॥३॥ ॥हवे ए मार्गणाहार स्थितजीव गुणगणी होय, तेथी गुणगणाधारें प्रति दश हार कहेशे, ते कहे . ॥ चन्दस गुणेसु जिअजो, गु वढंग लेसाय बंधहेकय ॥ बंधाश्श चन अप्पा, बहुं च तो नाव संखाई ॥४॥ पागंतरं ॥ चनदस गुणगणेसु, जिअ जोगुवांग लेस्स बं. धाय ॥ बंधुदयु दीरणा, संतप्प बहुत्त दसहाणा ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy