________________
४३२
बंधस्वामित्वनामा तृतीय कर्मग्रंथ. अर्थ-विणुश्रणवीस के अनंतानुबंध्यादिक बबीश प्रकृति विना, मीसे के मिश्रगुणगणे शेष सीत्तेर प्रकृति बांधे, ते जिण के जिननाम अने नराउ के मनुष्यायुयें करी, जुश्रा के युक्त करतां बिसयरि के बहोतेर प्रकृति सम्मंमि के अविरतिसम्यक् ष्टिगुणगणे बांधे. अरयणासुजंगो के एम रत्नप्रनादिक त्रण नरकें उग्रंथी चार गुणगणा सुधी एहिज नांगो जाणवो, अने पंकाश्सु के पंकप्रनादिक त्रण नरकपृथवीयें तिबयरहीणो के तीर्थकरनामकर्मनो बंध न लाने, तेश्री ते प्रकृति हीन करीयें ॥ इत्यदरार्थः॥६॥
अनंतानुबंधिया कषाय चार, मध्यसंस्थान चार,मध्यसंघयण चार, कुखगति, निच्चैगर्गोत्र, स्त्रीवेद, दो ग्य, पुःस्वर, अनादेय, थीणीत्रिक, उद्योतनाम, तिर्यचत्रिक, ए पच्चीश प्रकृति अनंतानुबंधीयाने उदयें बंधाय, ते अनंतानुबंधीया मिश्रगुणगणे नथी ते माटे ए पच्चीशना बंधनो अंत, बीजे गुणगणे होय.अने मिश्रगुणगणे वर्त्ततो जीव को श्रायुबंध न करे तेथी अहीं मनुष्यायुनो बंध पण न थाय, ए रीतें बन्न प्रकृतिमाहेथी ए वीश प्रकृति विना मिश्रगुणगणे सीत्तेर प्रकृतिनो बंध नारकीने जाणवो. तथा नारकी अविरतिसम्यकदृष्टि चोथे गुणगणे वर्त्ततो को एक सम्यक्त्व गुणे करी जिननामकर्म पण अहींां बांधे तथा सम्यक्दृष्टि नारकी, कोइएक मनुष्यायु पण बांधे. तेथी ते सीत्तेर प्रकृतिमाहे ए बे प्रकृति नेलीये, तेवारें बहोंतेर प्रकृति चोथे गुणगणे बांधे, एम नारकीने प्रथमना गुणगणां चार होय, जे नणी देवता तथा नारकीने नवप्रत्ययें विरतिपणुं न होय तेथी ए आगला दश गुणगणे न होय. एम नरकगतिने विषे उघे तथा गुणस्थानकविशेषे प्रतिबंधस्वामित्व विनाग कही, हवे रत्नप्रनादिक पृथिवीनेदें करी निन्न नारकी विशेषने उचें तथा मिथ्यात्वादिक गुणस्थानकविशेष प्रकृतिबंधस्वामित्व विनाग कडेले. ___ ए रीतें एटले नरकगतिमध्ये उचे एटले सामान्यपणे तथा मिथ्यात्वादिक गुणस्था. नविशेषे जेह पूर्वे बंधस्वामित्व कयुं, तेहज घम्मानामे रत्नप्रनागोत्रं प्रथम नरकपृथ्वी, बीजी वंशानामें शर्करप्रनागोत्रं, त्रीजी शैलानामें वालुकप्रनागोयें, ए त्रण नरक पृथ्वीना नारकीने उघे एकसो ने वीश प्रकृतिमाहेथी सुर एकोनविंशतिक विना शेष एकसो ने एक प्रकृतिनो बंध होय. तेमांथी जिननामहीन सो प्रकृतिनो बंध मिथ्यात्वगुणगणे होय ते वली नपुंसकादिक चतुष्कविना अन्नु प्रकृतिनो बंध, सास्वादनगुणगणे होय. ते मध्ये अनंतानुबंध्यादिक बबीश प्रकृति हीन करीयें, तेवारें सीत्तेर प्रकृतिनो बंध मिश्रगुणगणे होय. ते सीत्तेरने जिननाम, मनुष्यायु सहित करतां बहोंतेर प्रकृतिनो बंध चोथे गुणगणे पहेली, बीजी तथा त्रीजी, नरकना नारकी बांधे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org