________________
४श्न बंधस्वामित्वनामा तृतीय कर्मग्रंथ.
॥ हवे चौद मार्गणानां नाम कहेले. ॥ गइ इंदीए काए, जोए वेए कसाय नाणेय ॥
संजम दसण लेसा, नवसम्मे सन्नि आदारे ॥२॥ अर्थ-प्रथम गइ के गतिमार्गणा, बीजी इंदीए के इंजियमार्गणा, त्रीजी काए के० कायमार्गणा, चोथी जोए के० योगमार्गणा, पांचमी वेए के वेदमार्गणा, बही कसाए के० कषायमार्गणा, सातमी नाणेय के ज्ञानमार्गणा,आठमी संजम के चारित्रमार्गणा, नवमी दसण के दर्शनमार्गणा, दशमी लेसा के लेश्यामार्गणा, अगीयारमी नव के जव्यमार्गणा, बारमी सम्मे के सम्यक्त्वमार्गणा, तेरमीसन्नि के संझिमार्गणा, चौदमी थाहारे के अहारकमार्गणा ॥ इत्यक्षरार्थः॥२॥ __गति श्राश्री सर्व जीव विचारीयें तो देव, मनुष्य, नारकी अने तिर्यंच, एम चार नेदें जाणवा. इंजियापेक्षायें एकेंजिय, बेंजिय, तेंजिय, चौरिंजिय, अने पंचेजिय, एम पाँच नेदें जाणवा. कायापेक्षायें पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पति अने त्रस, एम नेदे जाणवा. योगापेक्षायें मनोयोग, वचनयोग अने काययोग, एम त्रण न्नेदें जाणवा. वेदापेक्षायें स्त्री, पुरुष ने नपुंसक, एम त्रण नेदे जाणवा. कषायापेक्षायें क्रोधी, मानी, मायी ने लोनी, एम चार न्नेदें सर्व जीव जाणवा. ज्ञानापेक्षायें मतिझानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी,मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी ने विनंगझानी, ए बाठ ने जाणवा. चारित्रापेक्षायें सामायकचारित्र, दोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूदमसंपराय, यथाख्यात, देशविरति श्रने अविरति, एम विरतिनी अपेदायें सात नेदें जाणवा. दर्शनापेक्षायें चकुदर्शनीय, अचकुदर्शनीय, अवधिदर्शनीय अने केवलदर्शनीय, एम चार नेदें जाणवा. लेश्यापेक्षायें कृष्ल, नील, कापोत, तेज, पद्म ने शुक्कलेश्यावंत, ए बनेदें जाणवा. जव्य एटले मुक्तिगमन योग्यायोग्यनी अपेक्षायें विविध जीव, जव्य अने अनव्य, ए बेनेदें जाणवा. सम्यकदृष्टिश्रमानगुणनी अपेक्षायें मिथ्यात्वी, सास्वादनीय, मिश्र, दायोपशमिक, औपशमिक, अने दायिक, एम ने जाणवा. मनोझाननी अपेक्षायें सन्निश्रा जीव, तेथी विपरीत ते असनिश्रा जीव, एम बे नेदें जीव जाणवा. श्राहारनी अपेक्षायें आहारक अने अनाहारक, एम बे नेदें सर्व जीव जाणवा. ए रीतें मार्गणाना मूल नेद चौद अने उत्तर नेद बाशठ जाणवा ॥२॥
जिण सुर विनवा दार, देवान अ निरय सुहुम विगल तिगं ॥ एगिदि थावरा यव, नपु मिहं हुंम ब्वळं ॥ ३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org