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जिनस्तवनानि. हिश्रा के पुःखीश्रा, दीणा के० दीन, अने खी णा के० क्षीण एवा होता थका रूलंति के जमे जे. ॥ ए३ ॥ गुणकारि आधणिअंधिश्रअ निति आइंतुद जीवा नियाईदि
आई वल्लिनिअत्तातुरंगुव ॥ए॥ मणवयणकायजोगासुनिअत्ता तेवि गुणकराडंति ॥ अनिअत्ता पुण नंजति मत्तकरिणुव सीलवणं ॥ ए५ ॥ व्याख्या-हे जीव ! तुह के तने धणिशंधिरजु के अतिशे धृतिरूप जे रङ् एटले दोरडं तेणे करीनिअंताई के वश थएली एवी निश्रयाइं इंदिया नियत्त के० पोतानी इंजिन डे ते गुणकारी जे. जेम तुरंगुव के तुरंग एटसे वश थएला एवा बांधेला घोडानी पेठे वधि के वासवायोग्य . ॥ ए४ ॥ मण वयण काय के मन वचन अने कायना जे योग बे, ते पण गाढ एवा निवत्ता के नियंत्रिया थका एटले वश थया थका तेविगुणकराहुँति के ते पण विशेषे करी गुणकारी थाय बे. श्रने श्र. नियत्ता के न यंत्रिया थका पुण के वली, मत्त करिणव के मदोन्मत्त हस्तिनी पेठे सिलवणं के शीलरूप वनने मंजंति के नांगे . ॥ ए५ ॥
जद जद दोसा विरम जद जद विसएदि दोश् वेरग्गं॥ तद तद् विनायवं आसन्नं से परम पयं ॥५६॥ उक्करमे जदिंएदि कयंसमणेहिं जुव्वणबेदिं ॥ नग्गं इंदियसिन्नं धिपायारं विलग्गेदिं॥ ए७ ॥ व्याख्या-जहजह के जेम जेम दोसा विरम के दोषो विरमे बे, अने जहजह के जेम जेम विसएहिं होई वैरग्ग के० विषयमी वैराग्य थाय बे; तह तह के० तेम तेम विनायवं के जाणवू के सेब के तेदने परमपयं श्रासन्नं के परमपदनुं श्रासन्न एटले ढुंकडापणुं थाय बे. ॥ ए६ ॥ एहिं पुक्कर मेकयं के तेणे पुष्कर काम कसुं. ते कोणे पुष्कर काम कयुं ? ते कहे . के जेहिंसमणेहिं के जे श्रमणोए जुवणबेहिं के जोबन अवस्थाने विष इंदिशसिन्नं के० इंजियरूप सैन्यने जग्गं के नांग्यु. ते पुरुष धिपायारं के धैर्यरूपपायार एटले प्राकार जे गढ-तेने विलग्गेहिं के वलग्या जाणवा ॥ ए॥
तेधन्ना ताणनमो दासोदं ताणसंजमधराणं ॥ अद्धनि पबिरी जाण नहि अएखडकंति ॥ ॥ किंबहुणा जश्वंसि जीवतुमं सासयं सुदं
अरुदं ता पिअसु विसय विमुदो संवेगरसायणं निच्चं ॥ एए॥ व्याख्या-जाण के जे पुरुषने हिथए के हृदयने विषे अझवि पचिरी के अर्धपडियाली आंखे अर्थात् कटाद नेत्र करी जोनारी स्त्री नखडकंति के नश्री खट
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