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________________ १ए इंख्यिपराजयशतक. वेण मंडिअं जालंबसंति जब मूढा मणूा तिरिया सुरा असुरा॥नए॥ व्याख्या- केवल दनिम्मविए के निःकेवल पुःखेकरीने नीपजावेलो एवो जे संसारसायरे के संसाररूपी सागर- तेने विषे जीवो के जीव पडि के पड्यो , अने त्यां जे किलेसं अणुहवर के क्लेश अनुजवे , तं सव्वं के ते सघलो क्लेश श्रासवहेजअं के श्राश्रव ने हेतु जेनो एवो . ॥ ॥ ही इतिखेदे श्रदो संसारे के था संसारने विषे कर्म जे बे, तेणे महिलारूवेण के स्त्रीरूपे जालंमंमिश्र के० जाल मांमी. जब के जे जालनेविषे मूढ एवा मणुथा के मनुष्यो, तिरिया के तिर्यंच, सुरा के देवो, अने असुरा के० असुरकुमार देवो बशंति के बंधायडे ॥॥ विसमा विसयनुअंगा जेहिं डंसि जिानववर्णमि॥कीसंति उदग्गीदिं चुलसीईजोणिलकेसु॥एसंसारचारगिझे विसयकुवाएदिलुकि जीवा ॥ दिअमदिअ अमुणंता अणुदवंति अपंतःकाइए। व्याख्या-विसमा के विषम एवा विषयजुअंगा के विषयरूप जुजंगो एटले सर्पो, जेहिं के जेए नववर्णमि के संसाररूप अरण्यनेविषे जिया के जीव, मंसिया के करड्या बतां मुहग्गीहिं के फुःखरूप अग्निए करीने चुलसीईजोणिलरकेसु के चोरासी लाख जीवा योनिनेविष कीसंति के क्लेश पामे. ॥ ए ॥ संसारचार के संसारनुं चालवू, तप गिटे के ग्रीष्मकाल तेने विषे विसय के विषयरूप कुवाय के नगरो वायरो, तेणेकरी खुक्रिया के लुकाया थका एवाजे जीवो, तेहिश्रम हिथं के० हितग्रहितने अमुणंता के अजाणता थका थपंतपुरकाई के अनंत फुःखोने अणुहवंति के अनुनवे . ए? दाहाऽरंतहा विसयतुरंगा कुसिकिया लोए ॥ नीसणनवाडवीए पाडंति जिआण मुम्हाणं ॥ ए॥ विसय पिवासातत्तारत्तानारीसु पंकिलसरंमि ॥ उदिा दीणा खीणा रुवंति जीवा नववणंमि ॥ ए३ ॥ व्याख्या-हाहा इति खेदे ! मुशाणं जियाण के मुग्ध एवा जीवोने पुरंत के जेनो अंत कुःखे करीने बे, एवा पुछा के पुष्ट जे विसयतुरंगा के विषयरूप तु. रंग, एटले घोमा ते कुसिरिकथा के० विपरीत शिखावेला एवा लोए के खोकने विषे नीसणजवाडवीए के जयंकर एवी संसाररूपी अटवीमाहे पाडंति के पाडे . ॥ ए ॥ विसय पिवासा के० विषयरूप पिपासा एटसे तृषा-तेणे करी तत्ता के तप्त थएला एवा, अने नारीसुरत्ता के स्त्रीनेविषे शासक्त एवा जीवा के जीवो जववणं मि के० संसाररूपी वननेविषे स्त्रीरूप पंकिलसरंमि के कादववाला सरोवरमा छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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