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________________ इंख्यिपराजयशनक. रूप तृमा ने. जे तृमाए नमिश्रा के नचावेला एवा चन्दसपुव्वीवि के चौद पूर्वधारी पण हु के निश्चयें करीने निगोए के निगोदने विषे रुलंति के जमे . ॥३॥ हा विसमा दाविसमा विसया जीवाण जेदि पडिब-शा ॥ हिंडंत्ति नवसमुद्दे अणंतऽकाइ पावंता॥७॥मा इंदजालचवला विसया जिवाण विजतेअ समा॥ खणदिशा खणनिहा तातेसिं को हु पडिबंधो ॥ ५ ॥ व्याख्या-हा इति खेदे ! विसमा के० विषम, वली हा इति खेदे ! विसमा के० विषम एवा विसया के विषयो, ते जीवने विषम जे जेहि के जे विषयोए करीने प. मिबंडा के प्रतिबंध थएला एवा जीव अणंतःका पावंता के अनंत दुःख पामता थका नवसमुद्द के संसार समुज्नेविषे हिंमंति के० हिंडेले. ॥ ४ ॥ मातिनिषेधे इंदजालचवला के इंउजालनी पेरे चपल एवा जे विसया के विषयो बे, ते जीवाण के जीवने ते विषयो विहातेयसमा के विजलीना तेज समान खणदिहा के क्षणमात्रमा देखाएला, पण पड़ी खणनिहा के क्षणमात्रमा नाश पामवानुं ने शील जेनुं, एटले एम के-विजली जेम क्षणमा देखवामां आवे श्रने वली क्षणमां न दीगमां श्रावे, तेम ए विषयो पण क्षणमात्र देखवामां आवे अने दणमां न दीगमां श्रावे, ता के ते माटे तेसिं के तेमनो हु के निश्चे कोपडिबंधो के शो प्रतिबंध करवो? ॥५॥ सत्तुविसं पिसाक वेलो हुअवदोविपङ्गुलिन ॥ तं नकुण जं कुविआ कुणंति रागाइणो देदे॥६॥जोरागाईणवसे वसंमि सोसयलउरक लकाणं ॥ जस्स वसे रागाई तस्सवसे सयलसुकाई ॥७॥ व्याख्या-जं के जेटलुं रागाणो के रागद्वेषादिक कुविधा के कोप्या थका देदे के देहनेविषे पुःखप्रत्ये कुणंति के करेले, तं के तेटतुं दुःख सत्त के शत्र विसं के विष, पिसान के पिशाच, वेालो के० वैताल अने पालि हुशवहोवि के प्रज्वलित थएलो अग्नि पण न कुणश् के न करी शके. ॥ ६ ॥ जो के जे पुरुष रागाईणवसे के० रागादिकने वश बे, सो के ते पुरुष सयलपुस्कलकाणं के फुःख समस्त लाखो गमे तेने वसंमि के० वश थ रह्यो एम जाणवू; अने जस्स के जे पुरुषना वसे के वशमां एटले स्वाधीनमा रागाई के रागादिक डे, तस्सवसे के ते पुरुषना वशमां सयलसुस्काई के सघलां सुख डे एम जाणवू ॥ ७ ॥ केवल जुद निम्मविए पडि संसारसायरे जीवो ॥ जं अणुदवा किलेसं तं आसवदेकअं सवं ॥1॥ दी संसारे विदिणा मदिलारू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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