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________________ इंज्यिपराजयशतक. सिवमग्ग संविआणवि जद उझेा जिआण पणविसया ॥ तद अनं किंपि जए अं ननि सयलेवि ॥ ७ ॥ सविडंकुनडरूवा दिहा मोदे जा मणं शनि॥ आयदिअं चिंतंता दूरयरेणं परिदरंति ॥ ए ॥ व्याख्या-जह के जेम सयले के सर्वजगतनेविषे सिवमग्गसंविधाणवि के मोदमार्गे जे रह्याने, एवा जिआण के जीवोने पण विसया के पांच विषय जे ते उर्जय बे; तह के तेम अन्नंकिंपि के अन्य कोर पण नबी उजेयं के उर्जय नथी. अर्थात् विषय जीतवा तेज पूर्जय बे, पण ते सिवाय बीजुं कांश पूर्जय नथी ॥ ॥ सविडंकुलमरूवा के सविटंक उन्नटरूप एवी इति के० स्त्री, ते दिहा के दीठी थकी मनने मोह पमाडे बे. ते ने श्राय हियं के श्रात्महितने चिंतंता के चिंतवता एवा जे पुरुष ते, ध्यरेणं परिहरंति के पूरथी परिहरे . ॥ ए॥ सवं सुअंपिसीलं विन्नाणं तद तवंपि वेरग्गं ॥ वच्चर खणणसचं विसय विसेणं जईणंपि॥०॥रेजीव मय विगप्पिय निमेस सुदलालसो कई मूढ ॥ सासयसुद मसमतमं दारिसि सिसि सोअरंचजसं ॥१॥ व्याख्या-सव्वंसुधं के सर्वश्रुत, सील के सर्वशील, विन्नाणं के सर्व विज्ञान तह के तेमज वेरग्गं के वैराग्य ते सव्वं के० सर्व जणं पि के यतिने पण विसय विसेणं के विषयरूप विषेकरीने खणेण वच्च के क्षणमात्रमा जतां रहे. ॥ ७० ॥ रे जीव ! सासयसुह मसमतमं के शाश्वतां सुख, जेना समान जगतमां बीजां को सुख नथी तेने, अने जेमां ससिसोबरंचजसं के चंजमा सरखो उज्वल यश , तेने हे मूढ, मयविगप्पिय के पोतानी मतिए कहप्यां एवां निमेससुदलालसो के निमेषमात्र सुखमां लंपट थश्ने कहंहारिसि के केम हारे ! ॥१॥ पसलिन विसयअग्गी चरित्तसारं डदिद्य कसिणंपि॥ सम्मत्तं पिविरादि अणंत संसारिअं कुद्या ॥२॥ नीसण नव कंतारे विसमा जीवाण विसयतिएदा॥जाए नमिचन्दसपुछीविरुलंति हु निगोए७३ व्याख्या-पतसिड के प्रज्वलित थएलो एवो जे विसयश्रग्गी के विषयरूप अग्नि जे ते कसिपि के समस्त एवा चरित्तसारं के० चारित्रना सारने महिद्य के बाले . अने सम्मत्तं के सम्यक्त्वने विराहिय के विराधीने अणंत संसारिश्र के अनंत संसारीपणाने कुश्शा के करे बे. ॥॥ जीवाण के जीवने नीसण के जयंकर एवा जवकं. तारे के संसार रूपी अरएयनेविषे विसमाविसय तिहार्ड के विषम एवी जे विषय mr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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