SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ इंख्यिपराजयशतक. किंतुमंधोसि किंवासि धत्तुरि अदव किंसंनिवारण आकरि ॥ अमय स मुधम्मजं विसव अवमन्नसे विसय विसविसम अमियंव बहुमन्नसे ॥ ४॥ तुधि तुहनाण विन्नाण गुणडंबरो जलण जालासु निवडंतु जिअ निरो॥ पय वामेसु कामेसु जरङसेजेहिंपुणपुण विनिरयानलेपच्चसे ॥ ५॥ ___ व्याख्या. हे जीव! किंतुमंधोसि के शुं तुं आंधलो ले ? किंवासिधत्तुरि के \ तें धंतुरो पीधोने ? अहव के अथवा तुं शुं संनिवाएणश्राऊरि के सन्निपात रोगेकरी आकुरित के परिपूर्ण ? के जं के० जे माटे अमयसमुधम्म के अमृतसमान धर्म बे, तेने विसव के० विषवत् अवमन्नसे के माने !! श्रने विसय विसविसम के विषयरूप जे महा विषम विष, तेने अमियंवबहुमन्नसे के अमृतवत् बहु माने ! ॥ ४ ॥ जिथ के हे जीव ! तुसि के तुं तुहनाणविन्नाण गुणडंबरो के तारुं ज्ञान तारुं विज्ञान अने गुणोनो आडंबर ते जलण जालासु के ज्वलन ज्वालाने विषे निप्परो के अत्यंतपणे निवडंतु के० पमो. जं के जे कारण माटे पयश्वामेसु के प्रकृतिए करी वांका-विपरीत एवा जे कामेसु के कामनोग तेनेविषे रससे के तुं राचे . माटे जेहिं के जे कामनोगेकरीने तुं पुण पुण के वली वली विशेषे करीने निरयानले के नरकरूपी अग्निने विषे पञ्चसे के पचेडे ॥ ५ ॥ दद गोसीस सिरकंड गरकए बगल गदणह मेरावणं विक्कए ॥कप्पतरुतोडि एरंड सोवावए जुलि विसएहिं माणुअत्तणं दारए ॥ ७॥ अधुवं जीविअंनचा सिक्ष्मिग्गं विप्राणिया ॥ विणि अहिश्त नोगेसु आलं परिमिअमप्पणो ॥ ७॥ व्याख्या-जुझि केण्जे पुरुष विसएहिं के विषये करीने मणुअत्तणंहारए के मनुष्यपणं हारे तो ते दहश्गोसीस सिरखंगबारकए के सूकी राखने माटे गोशीर्ष ते बावना चंदन श्रने सिरखंग एटले सुखम तेने दहश् के बाले बे, अने बगल गहणत के बोकडो सेवाने अर्थे मेरावणं विक्कए के ऐरावतहाथीने वेचेले. अने सो के ते कप्पतरुतोडि के कल्पवृक्षने तोडी एरंगवावए के एरंमाने वावे.॥ ६ ॥ जे उत्तम पुरुषो डे ते अधुवं के श्रशाश्वतुं ए जे जीवियनच्चा के जीवितव्य जाणता थका, अने सिकिमग्ग के मोदमार्गने पण विश्राणिया के जाणता, अने अप्पणो के पोतानं परिमिअं के परिमित एटले प्रमाणसहित श्रायुष्य जाणीने, अर्थात् आटझुंज आयुष्य बे; एवं ते जाणता थका जोगेसु के जोग थकी विणिश्रहित के निवर्ते ॥॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy