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________________ ४१३ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. घात, पराघात ने उहास, ए अगुरुलघुचतुष्क. वर्ण, गंध, रस ने स्पर्श, ए वर्णचतुष्क; एवं त्रेवीश प्रकृति थ. निर्माण नाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, वज्रषज. नाराचसंघयण, ए सत्तावीश प्रकृति काययोग रुंधे थके काययोगने बनावें करीयोगीगुणगणे एनो उदय न होय. ॥२१॥ सूसर दूसर साया, ऽसाए गयरं च तीस वुजेठ ॥ बारस अजोगि सुनगा, इज जसऽन्नयर वेअणिअं॥१२॥ अर्थ-सूसर के सुस्वरनामकर्म, इसर के फुःस्वरनामकर्म, तथा सायाऽसाएगयरंच के शातावेदनी अने आशाता वेदनी ए मांहेली एक प्रकृति ए रीते तीसबुछेउ के त्रीश प्रकृतिनो उदय विदे, तेवारें बारसथजोगि के बार प्रकृतिनो उदय श्रयोगीगुणगणे होय. तेनां नाम कहे. सुजग के सौजाग्यनामकर्म, श्राश्ज के० था. देयनाम, जस के यशःकीर्ति नाम, अन्नयरवेषणिकं के बे मांहेतुं अनेकै एक वेदनीय, एवं चार प्रकृति थ॥ १२ ॥ . ए पुजलविपाकनी प्रकृति जीवने कायसंबंध टले थके यहां प्रदेश घन करे. अने वचनयोग रुंध्या पली चौदमे गुणगणे स्वर निरोधे सुस्वरें पुःस्वरनामनो उदय विछेद पामे. ए गणत्रीश थर तथा शातावेदनीय उदय प्राप्त होय तो अशातावेदनोयनो उदय छेद थाय अने अशातावेदनीयनो उदय प्राप्त होय तो शातावेदनीयनो उदय छेद थाय. एम बेहु प्रकृतिमाहेथी एक प्रकृतिनो उदय बेदे, पण नानाजीवनी अपेकायें बेहुनो उदय अयोगी गुणगाणे लाने तथापि एक जीवने स्तोककाल नणी एकनोज उदय पामीयें, ते अपेक्षायें त्रीश प्रकृतिनो उदय विछेद सयोगी गुणगणे कह्यो माटे बेंतालीशमाहेथी त्रीश प्रकृतिनो उदय टव्यो, तेवारें शेष वेदनीय एक, थायु एक, नामनी नव, गोत्रनी एक, ए बार प्रकृतिनो उदय चौदमा अयोगी गुणगणाना चरम समयसुधी लाने अने बेले समय ए बार प्रकृतिनो उदयविछेद थाय, ते कहे. सौजाग्यनामकर्मजीवविपाकी, आदेयनामकर्मजीवविपाकी, यशनामकर्मजीवविपाकी, जेनो उदय विछेद सयोगी गुणगणाने प्रांतें नथी तथा शाता अशातामांहेलो एक वेदनीयकर्मजीवविपाकी. ए चार प्रकृति जीवविपाकीनी जाणवी ॥ १५ ॥ तस तिग पणिदि मणुआ, उगइ जिणु चंति चरिम समयंतो ॥ उदउँ सम्मत्तो ॥ उदनबुदीरणया, परमपमत्ता सग गुणेसु॥ (पागंतरे) पमत्ताई सगतिगुणा ॥ २३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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