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कर्मस्तवनामाद्वितीय कर्मग्रंथ.
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बारमा गुणवाणाने बेहेले समयें पंचावन प्रकृतिनो उदय लाने, त्यां चौद प्रकृतिनो उदय विवेद याय, तेनां नाम कहे बे. ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय चार, अंतराय पांच, ए चौद प्रकृति आत्मगुणघातीनी बे ते विशुद्धपरिणामें करी उदय तथा सत्तायें सार्थेज टले तेवारें केवलज्ञानादिक श्रात्मगुणनिश्चयनया निप्रायें वारमा गुणगणाना अंतसमयें छाने व्यवहारनयथी तेरमा गुणवाणाने पहेले समयें, प्रगट थाय. त्यां केवलज्ञान, केवलदर्शन, तथा दान, लाज, जोग, उपजोग, वीर्य, ए पांच क्षायिक लब्धि गुण प्रगटे तेवारे पूर्वोक्त पंचावन प्रकृतिमांथी चौद प्रकृतिनो उदय विछेद् के शेष एकतालीश प्रकृतिनो उदय रहे श्रने मूलपाठें बेतालीशनो उदय को ते केवी रीतें ? तेनुं श्रगली गाथायें समाधान करे.
तिबुदया उरलाथिर, खगइ डुग परित्त तिग ब संगणा ॥
गुरु लहु वन्न च निमि, ए ते कम्माग संघयण ॥ २१ ॥
अर्थ-दिया के० त्यां तीर्थंकरनामकर्मनो उदय होय माटे बेंतालीश कही. वहीं उरल के दारिकद्विक, अथिर के० अथिर द्विक, खगइडुग के० खगतिद्विक, परितति के० प्रत्येक त्रिक, बसंगणा के बसंस्थान, अगुरुलहु के० छागुरुलघुचतुष्क, वन्नच के० वर्णचतुष्क, निमिण के निर्माणनाम, तेहा के० तैजसशरीर, कम्मा to कार्मणशरीर, इगसंघयण के० एक वज्ररुषननाराचसंघयण एवं सत्तावीश प्रकृति ॥ इत्यर्थः ॥ २१ ॥
जेमाटे रसोदयनी अपेक्षायें करीने जिननामकर्मनो उदय यहीं लाने े तेणे करीने पोतानी देशनायें चतुर्विधसंघ स्थापे. बीजो जिननामनो बाधाकाल, अंतरमुहूर्त्तनो को. ते प्रदेशोदयनी अपेक्षायें जाणवो. जिननामने प्रदेशोदय यये थके पण बीजा जीवनी अपेक्षायें तेनी श्राज्ञा ऐश्वर्यादिक वधे पण ते हीं विवदयुं नथी. यहीं सघले स्थानकें रसोदय विवदयो बे तेथी ते एकतालीश प्रकृतिमांहे जिननामोद तां नामकर्मनी मत्रीश तथा मनुष्यायुनी एक, वेदनीयनी वे अपने उच्चै - गनी एक. एवं बेतालीश प्रकृतिनो उदय, सयोगी गुणगणे लाने, त्यां त्रीश प्रकृतिनो उदय विछेद होय, ते कहे बे. औदारिक शरीर अने औौदारिक अंगोपांग, ए
दारिकः स्थिर ने अशुभ ए अस्थिर द्विक; शुभ विहायोगति अने शुविहायोगति, ए खगतिद्विक; प्रत्येकनाम, स्थिरनाम, शुजनाम, ए प्रत्येक त्रिक; समचतुरस्र, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुल, छाने हुं. ए व संस्थान; अगुरुलघु, उप
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