________________
४१०
कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. नामनी उंगणचालीश, गोत्रनी एक, अने अंतरायनी पांच, एवं शाठ प्रकृतिनो उदय सूदमसंपरायनामा दशमे गुणगणे लाने. त्यां चोथा संज्वलनना लोननो उदय दाय, केमके संज्वलनने उदयें यथाख्यातचारित्र हणाय बे, अने पागले चार गुणगणे यथाख्यातचारित्र होय तेथी त्यां संज्वलननो लोन न होय, तेवारें शेष उंगणशा प्रकृतिनो जदय उपशांतमोह वीतरागद्मस्थनामा अगीश्रारमे गुणगणे लाने, त्यां झषजनाराचसंघयण, बीजुं नाराचसंघयण, ए बे नामकर्मनी प्रकृतिनो उदय विछेद थाय, केमके वज्रषजनाराचसंघयण विना बीजा संघयणना धणी, दपकश्रेणि आरंने नहीं, अने आगलांत्रण गुणगणानी प्राप्ति झपकश्रेणि विना थाय नहीं. तेथी ए बे संघयणनो उदय न होय माटे पूर्वोक्त जंगणशा प्रकृतिना उदय मांहेथी बे संघयणनो उदय टाले थके ॥ १५ ॥
सगवन्न खीण उचरिमि, निद्द गंतो अचरिमि पणवन्ना ॥
नाणंतराय दंसण, चन जे सजोगि बायाला ॥२०॥ श्रर्थ-सगवन्न के तेवारें सत्तावन प्रकृतिनो उदय ते खीणचरिमि के दीणमोहगुणगणाना बेला छिचरमसमययी अर्वांग बीजा समयलगें होय. निदगंतो. अचरिमि के त्यां वली निझा ने प्रचला ए बे प्रकृतिनो उदयविछेद थाय, तेवारें बेले समये पणवन्ना के पंचावन प्रकृतिनो उदय होय, त्यां नाण के ज्ञानावरणीय पांच, अंतराय के अंतराय पांच, दंसणचन के दर्शनावरणीय चार, एवं चौद प्रकृ. तिनो उदय, बे के दाय, तेवारें सजोगि के० सयोगीगुणगणे बायाला के बेंतालिश प्रकृतिनो उदय होय ॥ इत्यदरार्थः ॥ २० ॥
शेष ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय ब, वेदनीय बे, आयु एक, नामनी साडत्रीस, गोत्रनी एक, अंतरायनी पांच, एवं सत्तावन्न प्रकृतिनो उदय वीतरागबद्मस्थ क्षीणमोह गुणगणाना फुचरिम एटले ए गुणगणानो काल अंतर मुहर्त प्रमाण २ तेना बेला बे समय ते मांहेलो प्रथम बेलाथी पहेलो समय त्यां लगे होय. त्यां निमा श्रने प्रचला, ए बे दर्शनावरणीयनी प्रकृतिनो उदय विछेद पामे. अहीं केटलाएक श्राचार्य कहे के उपशांत मोहेंज वे निजानो उदय होय पण वीणमोहें न होय तथा सत्तरिनामे बहा कर्मग्रंथना अभिप्रायें तो दपक श्रेणिना धणीने अति विशुरू जणी निसानो उदय, निषेध्यो बे. पण आ ठेकाणे शुं जाणीयें, केवा अनिप्रायथी निजानो उदय, आपकने मान्यो ? ते जणातुं नथी ते अपेक्षायें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org