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________________ ४०६ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. तेवारें एकसो अरमांथी नव काढि, शेष एकसो ने वे रही तेमांहेथी पण देवानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी अने तिचानुपूर्वी ए त्रण आनुपूर्वीनो उदय, मिश्रगुणगणे न होय, जे जण मिश्रगुणठाणे वर्त्ततो जीव, मरे नहीं. जेथी करी अंतरातें वक्रगति न पामीयें तेथी आनुपूर्वीनो उदय यहीं न लाने, तेवारें शेष नवाएं प्रकृतिनो उदय रह्यो मिश्रमोहनीयनो उदय छाहीं पामीयें. केमके एना उदयथीज ए गुणठाएं होय बे, तेथी ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय नव, वेदनीय बे, मोहनीय बावीश, युनी चार, नामनी एकावन, गोत्रनी बे ने अंतरायनी पांच, एवं सो प्रकृतिनो उदय, मिश्रगुणठाणे होय. त्यां एक मिश्रमोहनीयनो उदय विछेद. जे जी मिश्रगुearer विना बीजे को गुणठाणे मिश्रमोहनीयनो उदय न होय. ॥ हवे श्रविरतिसम्यकदृष्टि नामे चोथे गुणठाणे उदयप्रकृति कड़े ते. एकसो चार मां नवाएं मिश्र हती छाने इहां सम्यक्त्व बतां पण चारे गतिमाहें जीवनी उत्पत्ति लाजे. तेथ वक्रगति करतां चार धानुपूर्वीनो उदय लाने अने क्षायोपशमिक सम्यक् ष्टिने सम्यक्त्वमोहनीयनो उदय होय, माटे ए पांच प्रकृतिनो उदय नेलतां एकसो चार प्रकृतिनो उदय चोथे गुणठाणे लाने. यहीं सत्तर प्रकृतिनो उदय विछेदाय, ते कहे बे. बीजा प्रत्याख्यानावरणीय कषाय चार ॥ १५ ॥ मतिरऽणु पुवि विडव छ डुदग प्रणाइऊडुग सतर बेर्ज ॥ सगसीइ देसि तिरि गई, आउनि नको ति कसाया ॥ १६ ॥ अर्थ तथा मतिरिपुत्रि के० मनुष्यानुपूर्वी अने तिर्यंचानुपूर्वी, विजवs o वैकियाष्टक, हग के दौर्भाग्यनामकर्म, अलाऊडुग के० श्रनादेयद्विक, ए सतरado ए सत्तर प्रकृतिनो उदयविछेद थाय तथा बाकी सगसीइ के० सत्याशी प्रकृतिनो उदय, देसि के० देशविरति पांचमे गुणठाणे होय. अहींयां तिरिगइ केव तिर्यंचगति, उ के० तिर्यंचायु, नि के० नीचैर्गोत्र, उशोध के० उद्योतनाम, तिकसाया के० त्रीजा प्रत्याख्यानावरण कषायनी चोककी ॥ इत्यरार्थः ॥ १६ ॥ मनुष्यानुपूर्वी, तिचानुपूर्वी, ए बेनो उदय, मनुष्य, तियंचगतिमांदे श्रवतरतां वक्रगति जीवने होय. त्यां विरति न होय, केमके विरति सहित जीव परजवें अवतरे नहीं तथा वैयिशरीर, वैक्रियांगोपांग, देवत्रिक ने नरकत्रिक ए वैक्रियाष्टक एनो उदय देवता तथा नारकीने होय, तेने चोथा गुणवाणाथी उपरला गुणठाणांन होय, तेथी ए व प्रकृतिनो उदय, अहीं विछेद पामे. तथा वैक्रियशरीराने वैकिय अंगोपांग, ए बे प्रकृतिना उदय, मनुष्य, तिथंचने लब्धिप्रत्ययवैक्रिय शरीर करतां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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