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कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ.
४०५ होय. जे जणी नरकानुपूर्वीनो उदय, वक्रगतिये नरकगतिमाहे जातां वचले समय होय अने औपशमिक सम्यक्त्व वमतां नरकगतिमाहे न जाय. परंतु मिथ्यात्वी थकोज नरकगतिमाहे जाय. सास्वादनगुणगणानो धणी मनुष्य अथवा तिर्यचजेवारे वक्र नरके जाय, तेवारें पहेले समय, सास्वादननो उदय ने तेवारें मनुष्य होय ता मनुष्यायु अने तिर्यंच होय तो तिर्यंचायुनो उदय होय एम जाणवू, अने तेवार पड़ी सम्यक्त्व वमतां नरकानुपूर्वीनो उदय होय अने वम्या पठी नरकायुनो उदय होय. जेमाटे मिथ्यात्वी थक्ष नरकें जाय पछी त्यां नरके उपन्या थका त्यां पर्याप्ता थया पली उपशमसम्यक्त्व आवे. वली तेने वमे; ते वम्या पली सास्वादनगुणगणुं होय, तेवारें नरकायुनो पण उदय अने दायिकसम्यक्त्वनो धणी तो श्रेणिकराजानी पेरें सम्यक्व सहितज नरकें जाय, अने सास्वादन औपशमिक अने दायोपशमिक सम्यक्त्वनो धणी, सम्यक्त्व वमीने नरकें जाय. तेथी एनो पण अनुदय जाणवो. तेथी शेष ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय नव, वेदनीय बे, मोहनीय पच्चीश, आयुनी चार, नामनी उंगणसाठ, गोत्रनी बे अने अंतरायनी पांच, एवं एकसो ने अगीआर प्रकृतिनो उदय, सास्वादने होय. अहीं उदयविछेद नव प्रकृतिनो होय, ते केवी रीतें? तो के अनंतानुबंधीया कषायने उदयें, आगलां गुणगणां न होय तथा स्थावरनाम, एकेंजियजाति, ए बे प्रकृतिनो उदय, एकेजियने होय तथा बेइंडियजातिनो उदय, बेईजियने होय. तेंजियजातिनो उदय, त्रेजियने होय अने चौरिंजियजातिनो उदय, चौरिंजिय जीवने होय. अने ए एप्रिय तथा विकलेंजियने मिथ्यात्व अने सास्वा. दन ए बे गुणगणां विना शेष मिश्रादिक बार गुणगणां न होय, तेथीए पांच प्रकृति तथा अनंतानुबंधीया चार, एवं नव प्रकृतिनो उदय विछेद, सास्वादने होय ॥ १४ ॥
मीसे सय मणुपुची, णुदया मीसो दएण मीसंतो॥
चनसय मजए सम्मा, णु पुछि खेवा बिअ कसाया ॥ १५ ॥ अर्थ-मीसेसय के मिश्रगुणगणे एकसो प्रकृतिनो उदय होय, मणुपुत्रीणुदया के त्रण आनुपूर्वीनो उदय, अहीं होय नहीं अने मीसोदएण के मिश्रमोहनीयनो उदय होय, तेथी. तथा मीसंतो के मिश्रनो अंत होय, तेवारें चउसय मजए के एकसो ने चारनो उदय श्रविरतिसम्यक्दृष्टिगुणगणे होय. सम्माणुपुविखेवा के एक सम्यक्त्वमोहनीय श्रने चार आनुपूर्वी, ए पांच उदयप्रकृति क्षेपवियें तेवारें एकसो ने चार थाय. अहीं विपकसाया के बीजा अप्रत्याख्यानावरणीय कषायनी चोकमी ॥ इत्यदरार्थः ॥ १५ ॥
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