________________
४०४
कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. रनामकर्मनो उदय तेरमे चौदमे गुणगणे लाने, पण बीजा बार गुणगणे न लाने, तेथी ए पांच प्रकृतिनो उदय, मिथ्यात्व गुणगणे न लाने. ते पांच अनुदय उघ एकसो बावीशमाहेथी काढतां शेष एकसो सत्तर प्रकृतिनो उदय, आगले गुणगणे जाणवो, पण ए पांचनो उदय यथावस्थान लानशे ते नणी उदय विछेद न कह्यो. ॥ १३ ॥ ॥ हवे जे प्रकृतिनो उदय, मिथ्यात्वेज , पण आगल नथी ते कडे. ॥
सुहुम तिगायव मिडं, मिडतं सासणे गारसयं ॥
निरयाणुपुविणुदया, अण थावर इग विगल अंतो॥२४॥ अर्थ- सुहुमतिग के सूक्ष्म त्रिक, थायव के आतपनामकर्म, मिठं के० मिथ्यात्वमोदनीय, ए पांचनो मितं के मिथ्यात्वगुणगणाने अंतें उदयविछेद थाय, तेथी सासणे के सास्वादनगुणगणे गारसयं के एकसो ने अगीबार प्रकृतिनो उदय लाने. केमके निरयाणुपुविणुदया के नरकानुपूर्वीनो श्हां अनुदय बे ते माटे. अने श्रण के अनंतानुबंधीया चार, थावर के स्थावरनाम, इग के एकेंजियजाति, विगल के विकलत्रिकजाति, एवं नव प्रकृतिना उदयनो अंतो के अंत सास्वादने होय ॥ इत्यदरार्थः॥१४॥
सूक्ष्मनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणनाम, ए सूक्ष्म त्रिक. एनो उदयविद प्रथम गुणगणे थाय, जे जणी सूक्ष्म नामनो उदय,सूक्ष्म एकेंजिय जीवने होय,अपर्याप्तनामनो उदय, एकेजियादिक लब्धिथपर्याप्ताने होय. साधारणनामनो उदय, निगोदिया जीवने होय. ए त्रणे तो नियमा, मिथ्यात्वीज होय. तथा आतपनामनो उदय, बादरएकेंजियने पर्याप्तावस्थायें होय. ते मिथ्यात्वीज होय, अने अपर्याप्तावस्थायें सास्वादनगुण होय, पण त्यां श्रातपनो उदय न होय. मिथ्यात्वमोहनीयने रसोदयें तो मिथ्यात्वगुणगणुंज होय पण बीजां तेर गुणगणां न होय. बादरअपर्याप्ता पृथ्वीकायस्फटिकने आतपनामकर्मनो उदय न होय. ते वेलायें सास्वादन गुणगणुं होय, पण मिथ्यात्व गुणगणुं न होय. ___एम एकसो ने सत्तर प्रकृतिमांदेथी ए पांचना उदयनो अंतप्रांत मिथ्यात्वेज होय. तेथी सास्वादनगुणगणे एकसो ने अगीश्रार प्रकृतिनो उदय रह्यो. अहीं शिष्य प्रश्न करे बे, के एकसो ने सत्तर प्रकृतिनो उदय, मिथ्यात्वे हतो तेमांथी पांच प्रकृतिनो उदय टले, तेवारें शेष एकसो ने बार प्रकृतिनो उदय रह्यो जोश्ये, तो एकसो ने श्रगीआर प्रकृतिनो उदय, सास्वादने होय ए केम घटे ? अहीं गुरु उत्तर कहेडे, के एकसो बार प्रकृतिनो उदय रह्यो तेमाहे पण नरकानुपूर्वीनुं उदयपणुं सास्वादने न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org