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________________ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. ४०३ हवे बांधेली प्रकृति, पोतपोतानो अबाधाकालायें विपाक देखाडे, जेमाटे बंध पनी उदय करे, तिहां प्रथम उदयलक्षण तथा ते सरखा जणी उदीरणा करण विशेष तेनुं पण लक्षण कदेवापूर्वक चौद गुणगणा श्राश्रयीने उदय खामित्व विवरे . उद विवाग वेषण, मुदीरण मपत्ति इह ज्वीस सयं ॥ सतर सयं मि मी, ससम्म आहार जिणणुदया ॥१३॥ अर्थ- उदविवागवेषण के० कर्मरसतुं विपाककालें वेद, ते उदय. अने मुदीरणमपत्ति के उदय काल अणपहोंचे खेंचीने वेदवं, ते उदीरणा जाणवी. इहवीससयं के एवी ए एकसो ने बावीश कर्मप्रकृति ये होय अने सतरसयं मिले के। एकसो ने सत्तर प्रकृतिनो उदय, मिथ्यात्वगुणगणे होय, केमके ए गुणगणे मीस के० मिश्रमोहनीय, सम्म के सम्यक्त्वमोहनीय, थाहार के थाहारकट्रिक, अने जिण के जिननामकर्म. ए पांच प्रकृतिनो अणुदया के उदय न होय ॥ इत्यदरार्थः ॥१३॥ त्यां उदय एटले बांधेला जे कर्म, तेनो जे विपाक एटले तीव्र, मंद, घाती, श्रघाती, कटुक, मिश्र, इत्यादिक रस, सहेजें उदयकाल आवे थके वेदे, जोगवे, ते उदय कहीये. अने जे कर्मदलने उदयकाल श्रण आवे थके जीव पोतानुं करणवीर्य विशेष तेणे करी उदयावलिकामांहे प्राणी अप्राप्तकालें जोगवे, ते उदीरणा कहीयें तेथी उदयना बे नेद बे. एक उदयोदय श्रने बीजो उदीरणोदय. त्यां यहीं सामान्यपणे गुणगणां जीव नेदादिक विवदा कस्या विना सर्व जीवनी अपेक्षायें एकसो बावीश प्रकृति होय, जे जणी सम्यक्त्वमोहनीय, अने मिश्रमोहनीय, ए बे प्रकृति बंधे न लेखवी अने उदय उदीरणायें विशेषजणी जिन्न लेखववी, तेथी ज्ञानावरणादिक एकसो ने बावीश प्रकृति सेवी. हवे गुणगणादिक विशेषापेदायें उदय प्रकृतिविचार पूजे, त्यां प्रथम मिथ्यात्वगुणगणे सर्व मिथ्यात्वी जीवनी अपेदायें एकसो ने सत्तरप्रकृतिनो उदय लाने. तेम उदीरणायें पण एकसो सत्तर लाने, केमके मिश्रमोहनीयनो उदय, मिश्रगुणगणेज होय अने सम्यक्त्वमोहनीयनो उदय, चोथा गुणगणाथी लेश ते सातमा गुणगणा सुधी होय अने थाहारकशरीर, तथा आहारक अंगोपांग, ए बे प्रकृतिनो उदय, चौद पूर्वधरने जे ते प्रमत्तगुणगणे लाने. तीर्थकरनामकर्मना दलनो उदय, चोथा गुणगणाधी मामीने बारमा गुणगणा लगें होय. पण उपशांत मोहपणुं तीर्थकरने नज होय. तीर्थकरनामकर्मनो रसोदय तो तेरमे अने चउदमे गुणगणे होय. तीर्थकरने मिथ्यात्व, साखादन, मिश्र धने उपशांतमोह, ए चार गुणगणां न होय. ते तीर्थंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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