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________________ ४०० कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. चार, हास्य, रति, जय, जुगुप्सा, पुरुषवेद एवं मोहनीनी नव, यशः कीर्त्तिनाम, उचैत्र ने पांच अंतराय, एवं सात कर्मनी उत्तरप्रकृति बबीश बांधे, त्यां बंधविछेद क. पूर्वकरणना सातमा जागने प्रांतें श्रुतिविशुद्ध श्रध्यवसाय थया, तेमाटे एक हास्यमोहनी, बीजुं रतिमोहनी, त्रीजुं जुगुप्सामोहनी, चोयुं जयमोहनी, ए चार प्रकृतिना बंधयोग्य अध्यवसायस्थानक टली जाय. तेवारें शेष बावीश प्रकृतिनो बंध रहे ॥ १० ॥ निहि नाग पणगे, इगेगदीणो वीसविद बंधो ॥ पुम संजल चनएदं, कमेण बेर्ड सतर सुदुमे ॥ ११ ॥ अर्थ-निहिनागपणगे के० श्रनिवृत्तिकरण नामे नवमा गुणठाणांना पांच भागने विषे इगेगहीणो के० जागजाग दीठ एकेक प्रकृतियें हीन, डुवीस विदबंधो के बावी प्रकृतिनो बंध होय, ते केम ? तोके पहेले जागें बावीशनो बंध होय, बीजे जागें पुम के० पुरुषवेद उठो करतां एकवीशनो बंध तथा तेवार पढी तृतीयादिक जागने विषे संजल एच एहं के० संज्वलन कषायनी चोकमीमांहेली एकेक प्रकृतिनो बंध, कमेण के० अनुक्रमें बंधथी बेठे के० बेदाय, तेवारें सतरसुहुमे के० सत्तर प्रकृतिनो बंध सूक्ष्म संपरायनामा दशमे गुणठामे जावो ॥ इत्यरार्थः ॥ ११ ॥ निवृत्तिकरण एवे नामे नवमं गुणठाएं बे तेनो काल अंतर मूहूर्त्त प्रमाण. तेना पांच जाग कल्पीयें; तेमध्यें प्रथम जागें ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय चार, वे - दनीय एक, मोहनीय पांच, यशः कीर्त्तिनाम, उच्चैर्गोत्र ने अंतराय पांच एवं बाairat बंध बे, तिहां पुरुषवेदनो बंध विछेद थाय, तेवारें बीजे जागें एकवीश प्रकृतिनो बंध तिहां संज्वलना क्रोधनो बंध विछेद यये थके त्रीजे जागें वीश प्रकृतिनो बंध, तिहां संज्वलना माननो बंधविच्छेद थाय तेवारें चोथे जागें उगणीश प्रकृतिनो बंध, त्यां संज्वलननी मायानो बंध विच्छेद पामे, तेवारें पी ए अनिवृत्तिकरण गुणापाना पांचमां जागें ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय चार, वेदनीय एक, मोहनीय मांहेलो संज्वलनो लोज एक, अने यशः कीर्त्ति नाम, एवं बार उच्चैर्गो ने पांच अंतराय एवं ढार प्रकृतिनो बंध होय. नवमा गुणठाणाने बेडे संज्वलना लोजनो बंध पण विछेद पामे, जे कारण माटे एनो बंध बादरकषायोदय प्रत्य बे, ते बादरकषायोदल टले, तेथी तेनो बंध पण टले, तेवारें सूक्ष्मसंपरायनामें दशमे गुणठाणे Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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