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कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ.१ एकसो बावीश प्रकृति तथा सत्ताए के सत्तायें अध्वमसयं के० एकसो ने अहावन प्रकृति होय. इति ॥ ३ ॥ ___ एम एज शडशह नामकर्मनी प्रकृतिनो ज्यां बंध तथा उदय तथा उदीरणा तथा चशब्दथकी बीजा पण कारणे त्यां शडशठ लेवी, तथा बीजां सात कर्ममाहे मोहनीयकर्मनी अहावीश प्रकृति बे, तेमाहे सम्यक्त्वमोहनीय तथा मिश्रमोहनीय, ए बे प्रकृतिनो बंध नथी. कारण के ए बेहु प्रकृतिनुं दल मिथ्यात्वमोहनीयतुं जे लणी उपशमसम्यक्त्वें करी शुद्ध कस्यो विपर्यासजनक स्व नाव जेधी टाख्यो, ते सम्यक्त्वमोहनीय कहीये. जे थकी अविरोधस्वजाव टल्यो, ते मिश्रमोहनीय. तेथी ए बन्ने प्रकृतिबंधमां न लेखवीयें श्रने एनो उदय निन्न होय जेमाटे सम्यक्त्वमोहनीयनो देशघातिठ रसोदय देशघातिक कदेतां समकितने कांक हणे ते देशघातिक कहीयें, मिश्रमोहनीयना नावथी कांश्क अधिक सम्यक्त्वने हणे, ते देशघाति रसोदय. अने मिश्रमोहनीयनो बेगणी रसोदय तथा मिथ्यात्वमोहनीयनो चउगणी सर्वघाति रसोदय तेमाटे सर्व कर्मनी प्रकृति, बंधविचारे एकसो ने वीश लेखवीये. अने उदय तथा उदीरणाविचारे सम्यक्त्वमोहनीय अने मिश्रमोदनीयनो उदय अधिक लेखवतां एकसो ने बावीश प्रकृति लेखववी. तथा कर्मनी सत्ता विचारतां नामकर्मनी त्राणुं तथा एकसो ने त्रण प्रकृति गुणतां सर्वश्राप कर्मनी एकसो ने अडतालीश तथा एकसो ने अहावन प्रकृति होय, ते जूदी जूदी लखी देखाडीयें बैयें. .. ज्ञानावरणीयनी पांच, दर्शनावरणीयनी नव, वेदनीयनी बे, मोहनीयनी बबीश, श्रायुनी चार, नामकर्मनी शडशक, गोत्रकर्मनी बे, अंतरायनी पांच, ए सर्व थक्ष एकसो ने वीश प्रकृति बंधयोग्य जाणवी. अने ए पूर्वोक्त प्रकृतिमां मोहनीयनी अहावीश प्रकृति गणतां सर्व कर्मनी एकसो ने बावीश प्रकृति उदय उदीरणायें जाणवी; तथा उपशमनायें पण सर्वोपशमनायें मोहनीयनी अहावीश संक्रमे, माटे एकसो ने बावीश जाणवी. तथा मोहनीयनी अहावीश,नामकर्मनी एकसोने त्रण, शेष बकमनी सत्तावीश; एम सर्व मली सत्तायें एकसो ने अहावन्न प्रकृति होय. अने जो पंदर बंधनने स्थानके पांच बंधन गणीये, तेवारें नामकर्मनी त्राणुं प्रकृति लेखवतां एकसो ने अमतालीश प्रकृति सत्तायें होय. ॥ ३ ॥
॥ हवे प्रकृतिना उत्तर भेद, नाम अने अर्थ कहे जे. ॥ नरय तिरि नर सुरगई, इग बिअ तिअ चन पणिंदि जाठ ॥ जराल विनवा दा, र तेअ कम्मण पण सरीरा (पागंतरे ) उरा लिअ वेविअ, आदारगे तेज कम्मश्गा ॥३३॥
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