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कर्म विपाकनामा कर्मग्रंथ. १
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अर्थ-ए पूर्वोक्त पांशठ प्रकृतिने या पराघातादिक, दश सादिक अने दश थावरादिक, एवं घडवी सजुया के० अहावीश प्रत्येक एटले बूटी प्रकृति जेमांदे उत्तर नेद न होय, एवी प्रकृति तेणे करी युक्त करीयें, तेवारें सर्व मलीने नामकर्मनी सत्ताये तिनवइ के० त्राएं प्रकृति थाय, ए एकसो ने अमतालीश प्रकृतिनी सत्तानी अपेकायें थाय. संते के संति ए प्राकृत शब्द होवाथी सत्ता वाचक बे एथी सत्कर्मनी प्रतीतिनो बोध थाय बे. वा शब्द, विकल्पना अर्थवालो बे एटले एनाची व्यवहित संबंधी योजना थाय बे एटले अथवा पनरबंधणे के० एनी साथे पांच बंधनने स्थानके विशेष अपेक्षाये पंदर बंधण लेखवतां मेलवीयें, तेवारे पिंडप्रकृतिना पांशव उत्तर भेदने स्थानके पंच्चोतेर थाय, एटले दश वधे. तेमां वली अहावीश प्र त्येक प्रकृति मेलवीयें तेवारे सिद्धांतने मते, कम्मपयमीने मते, सर्व मली तिसयं ho एकसो ने त्रण प्रकृति नामकर्मनी थाय, तेवारे सर्व कर्मनी मली एकसो ने - हान प्रकृति सत्ताये होय. हवे नामकर्मनी शडशव प्रकृति एवी रीते थाय, ते he a. वारे दारिकादिक पंदर बंधण के० बंधन तथा औदारिकादिक पांच संघाय के० संघातन, ए वीश प्रकृति, तेनुं गहो के० ग्रहण ते तणूसु के० केवल पांच शरीरसाज विवदिये ग्रहण करीयें, एटले ए वीश जेद जूदा न गणीयें, केवल पांच शरीरमांदे पोत पोतानां बंधन, संघातन जेलवीयें, जे माटे प्रदेशबंधन करतां पिंडप्रकृतिaाग, ते बंधन संघातनो जूदो न होय, शरीर नामकर्ममांदे श्रावे, ते कारणमा ए वी प्रकृति शरीरमांदेज घ्यावी, ते बी करवी. तथा सामसवसचऊ के० सामान्यपणे वर्ण, गंध, रस ने स्पर्श, ए चार गणतां एटले वर्ण, गंध, रस, स्पर्शना उत्तर द वीश थाय बे. तेनी त्यां सामान्यपणे चार प्रकृति लेवी, बाकीनी वर्णादिक शोल प्रकृति बी करवी अने वीश पूर्वली, ए रीते बद्धी मली बत्रीश प्रकृति, ते पूर्वोक्त एकसो ने त्रण प्रकृतिमांधी कहाढीयें, तेवारे शेष शडशठ प्रकृति नामकर्मनी रहे ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३१ ॥
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॥ वली तेहीज कहे . ॥
सत्ती बंधो, दए नय सम्म मीसया बंधे ॥ बंधुदए सत्ताए, वीस वीसऽवस्मयं ॥ ३२ ॥
अर्थ- सत्ती के० एम शमशह नामकर्मनी प्रकृति ते बंधोद के बंधन अपेक्षायें तथा उदयनी अपेक्षायें अने उदीरणानी अपेक्षायें होय. वली सम्म के० सम्यक्त्वमोहनीयाने मीसाबंधे के० मिश्रमोहनीयनो बंध, नय के० न होय. माटे बंध के बंधें वीश के० एकसो ने वीश प्रकृति अने उदए के० उदयें डुवीस के०
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