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________________ कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ ३५७ अर्थ- जे कर्मप्रकृतिना उदयथी जीवने नारकी एवे नामें बोलावीयें, ते कर्मनुं नाम निरय के नरकगति कहीये. जे थकी तिर्यंच नाम कहेवाय, ते कर्मनुं नाम तिरि के तिर्यंचगति. जे कर्मना उदयथी जीव, मनुष्य कहेवाय, ते कर्मनुं नाम नर के मनुष्यगति. जे कर्मना उदयथी जीव, देवता कहेवाय, ते कर्मनुं नाम सुर के देवगति. एम चार औदयिक पर्याय माहेला एक पर्यायथी बीजे पर्यायें जीव जाय, ते माटे एने गश् के गति कहीये. ए गतिनाम कर्म चार कह्यां. जे कर्मप्रकृतिना उदयथी जीव, एकेजिय कहेवाय, ते कर्मनुं नाम ग के० एकेडिय जाति. जे कर्मप्रकृतिना उदयथी जीव, बेणिय कहेवाय, ते कर्मनुं नाम विश्र के बेंजियजाति. जे कर्मना उदयथी जीव, चरिंडिय कहेवाय, ते कर्मनुं नाम चल के चलरिंजियजाति. जे कर्मना उदयथी जीव, पंचेंडिय कहेवाय ते कर्मप्रकृतिनुं नाम पकिंदिजान के पंचेंजियजातिनामकर्म कहीयें. ए जातिनामकर्म पांच कह्यां. जो पण नावेंजिय इंडियावरणक्षयोपशमथी होय श्रने अव्ये जिय इंडियपर्याप्तिनामकमना उदयथी होय पण एज जीव, एकेंघिय बे. एवं नाम जातिनाम उदयथी होय. हवे शरीरनामकर्म, पांच कहे . उराल के औदारिकनामकर्म, विजय के वैकियनामकर्म, आहार के श्राहारकनामकर्म, तेत्र के तैजसनामकर्म, कम्मण के कार्मणनामकर्म, पण शरीरा के ए पांच, शरीरनामकर्म कह्यां. तथा पागंतरें बीजा पदोनो अर्थ तो मलतोज डे परंतु कम्मश्गा के एक कार्मिक कार्मण शरीर, पांचमुं लख्युं बे. १ जे उदार एटले सर्व शरीरमांहे प्रधान, जे कारण माटे ए शरीरें करी मोद साधीयें, तीर्थकर गणधरादिक पदवी नोगवियें, ते नणी मनुष्य, तिर्यंचनुं औदारिकशरीर, जे कर्मना उदयश्री लहीयें तथा औदारिकपणे पुजल परिणमावियें, ते औदारिक शरीर. २ तथा जेणे करी नूचरथी खेचर थाय, खेचरथी नूचर थाय, न्हानुं टाली महोटुं करे अने महोटुं टाली न्हानुं करे, सुरूप कुरूप करे. इत्यादिक विविधक्रियावंत ज्यां होय, ते वैक्रिय बे नेदे बे. एक औपपातिक ते देवता तथा नारकीनां शरीर जवप्रत्ययी जाणवां. बीजं तिर्यंच तथा मनुष्यने लब्धिप्रत्यय ते वैक्रियपणे पुजल परिणमावीयें, ते जे कर्मना उदयथी लहीयें, ते बीजुं वैक्रियशरीर कहीये. ..३ तथा लब्धिवंत चौद पूर्वधर तीर्थकरनी शछि देखवा निमित्तें तथा संशय नांजवा निमित्तें मुंग हस्त प्रमाण थाकाश स्फटिक सरखं खल अतिसूक्ष्म थाहारकवर्गणाना स्कंधे करी शरीर नीपजावीने जिनेश्वर पासें मूके, ते थाहारकशरीर जाणवू, ते जे कर्मना उदयश्री थाय तथा थाहारकपणे पुजल परिणमावे, ते कर्मप्रकृतिनुं नाम त्रीजु थाहारकशरीरनामकर्म जाणवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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