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________________ ३४ए कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. ॥ हवे पांचमुं श्रायुःकर्म तथा बहुं नामकर्म कहे . ॥ सुर नर तिरि निरयाऊ, दडिसरिसं नामकम्मचित्तिसमं॥ बायाल तिनवविहं, तिउत्तरसयं च सत्तठी॥२३॥ अर्थ-एक सुर के देवायु, बीजुं नर के मनुष्यायु, त्रीजु तिरि के० तिर्यंचायु, चोथु निरया के नरकायु ते श्रायुःकर्मनो हमिसरिसं के० इडिनासरखो स्वनाव जाणवो. अने नामकम्मचित्तिसमं के नामकर्मनो स्वनाव, चितारा सरिखो, ते बायाल के बेंतालीश नेदे तथा तिनवविहं के त्राणुं नेद पण नामकर्मना जाणवा, अने तिउत्तरसयंच के त्रण अधिक एकसो नेद पण होय. वली सत्तही के शमशठ नेद पण नामकर्मना . ॥ इत्यदरार्थः ॥२३॥ तेमध्ये जे नामकर्मना उदयथी सुर कहेतां देव प्रायोग्यगत्यादिक हेतु जे सुरजोगर्नु नाजननूत, ते प्रथम सुरायु. नर कदेतां मनुष्यगति प्रायोग्यजोगनुं नाजननूत, ते बीजुं मनुष्यायु. तिरि कहेतां तिर्यंचगति प्रायोग्यनोगर्नु जाजननूत, ते त्रीजें स्चिायु. नरकगतिप्रायोग्यत्नोगनुं नाजनन्नूत, ते चोथु नरकायु. जेम हडि के काष्ठनो खोडो, तेमांहे रोक्यो जीव ते निकली शके नहीं. हमि नांगे तेवारें निकले। तेम गतिनो आयुष्योदय श्राव्यो ते जोगव्या विना त्यांथी जीव निकली शके नहीं परंतु श्रायु पूर्ण नोगवी रह्या पली सुखें निकले. ए श्रायुःकर्मनो स्वनाव जे. एम थायुःकर्मना चार नेद कह्या. __ हवे नामकर्मना नेद कहे . नामकर्मनो स्वन्नाव, चिताराना सरखो बे. जेम चितारो विचित्र वाने की विविध श्राकारना हस्ती, घोडा, मनुष्यादिकनां चला तथा जूंमां रूप श्रालेखे, तेम नामकर्म पण देव, मनुष्य, तिर्यंचादिक अनेकरूप, नाना संस्थान, नानावर्ण घडे. ते नामकर्मनी एक अपेक्षायें बेतालीश प्रकृति पण कहीये. तथा अवांतर स्वनावनी अपेक्षायें त्राणुं पण नामकर्मना नेद कहीये. एकसो अडतालीश सर्व प्रकृति सत्तायें लेतां, तथा कर्मस्तवसित्तरीने मतें तथा कर्मप्रकृतिने मतें पांच बंधनना पन्नर नेद लेखवतां एकसो त्रण प्रकृति नामकर्मनी, एकसो ने अहावन प्रकृति सत्तानी अपेक्षायें थाय. तथा बंध, उदय, अने उदीरणानी अपेक्षायें नामकर्मनी प्रकृति शमशह ने जाणवी ॥३॥ ॥ हवे प्रथम बेंतालीश नेद कदेवाने पिंडप्रकृति चौद कहे . ॥ ग जाइ तणु उवंगा, बंधण संघायणाणि संघयणा ॥ संगण वाम गंध रस, फास अणुपुछि विदगगई॥२४॥ अर्थ- एक गश् के गतिनाम, बीजुं जा के जातिनाम, त्रीजुं तणु के शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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