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________________ ३४६ कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ थ्यानिनिवेशरूप अनमनस्वनाव, तेथी ए तिणसलयादिकशुं नाम्य पुर्नाम्य नेदें चतुविधमान कह्यो. नावथी एना असंख्य नेद कहीये. ॥ हवे माया तथा लोजना नेद कहे .॥ मायावलेदि गोमु, त्ति मिंढसिंग घणवंसमूलसमा ॥ लोदो दलिद्द खंजण, कद्दम किमिराग सारिबो ॥ २० ॥ अर्थ- माया के माया ते अवलेह के वंशनी नोति सरखी, गोमुत्ति के बलद मुतरे ते सरखी, मिंदसिंग के0 मेंढाना शिंगमा सरखी वांकार, घणवंसमूलसमा के कठिन वांसना मूल सरखी वांकी माया डे; लोहो के संज्वलना लोननो रंग हलिद्द के० हलदर सरखो जाणवो, खंजण के सरावलानो मेल कदम के कईमपास सरखो, किमिराग के करमजीपाटनो रंग ते सारिबो के समानरंग अनंतानुबंधी लोजनो जाणवो. प्रत्यक्षरार्थ ॥२०॥ मायावक्रतास्वजाव थापणा अनिप्रायथी जिन्न वचन कायचेष्टा देखाडवी. ते माया जाणवी; त्यां कां सुसाध्य फुःसाध्यपणाने विषे दृष्टांत कहे जे. जेम अवलेही के वंशादिक बोलतां बोती नीकले, तेनुं वांकाशपणुं जेम करग्रहण मात्र टली जाय, तेम जेनी माया सुखे टले, ते संज्वलनी माया जाणवी. तथा जेम गो के० बलद चालतो मूतरे, तेनी वक्रता धूल मांहे सूकाया पली टली जाय, तेम जे उपायें करी जे माया बुटे, ते प्रत्याख्यानी माया जाणवी. तथा मेंढाना शिंगमानी वक्रता अत्यंत घणा कष्टें कोश्एक टाले, तेम जेना मननी वांका दोहली टले, ते त्रीजी अप्रत्याख्यानी माया जाणवी. तथा वांसनुं मूल तेनी वक्रता कोइ पण उपायथी टले नहीं, तेम अनंतानुबंधिनी मायाने उदयें करी जे जीवने वक्रता होय, ते घणे उपदेशे तथा घणा उपायें टले नहीं. ते अनंतानुबंधी माया जाणवी. एटले दृष्टांतपूर्वक चार प्रकारनी माया कही. हवे लोजना चार नेद कहे . जे खोजना उदयथी जीवने धनादिक परिग्रह उपरें ममत्वनो रंग होय, परंतु हलदरना रंगनी पेरें सुखे उताख्यो जाय, ते लोननाम संज्वलनलोन जाणवो. तथा खंजन के० सरावलानो चीकणो मेल जेम उपायें टले, तेम जे लोजना उदयथी थयो जे धनादिकनो रंग, तेने जपायें टाली शकाय, ते प्रत्याख्यानी लोन जाणवो. तथा कादव जे गामाना पश्मानो कचरो वस्त्रे लागो, ते घणा साबू प्रमुख अव्ये करी पुःखें उतरें, तेम जे लोजना उदयथी एवो पुःखसाध्य परीग्रह उपर रंग होय, ते त्रीजो अप्रत्याख्यानी लोन जाणवो. तथा किरमजी पाटनो रंग, कोश् पण रीतें उतास्यो न जाय, ते जेम लोजना उदयथी थयो जे धना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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