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________________ ३४४ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ.१ बीजो अप्रत्याख्यानी कषाय ते वरिस के एक वर्ष सुधी रहे, त्रीजो प्रत्याख्यानी कषाय, चउमास के चार मास सुधी रहे, चोथो संज्वलनकषाय ते पकग्गा के पंदर दिवस सुधी रहे, पहेलो निरय के नरकगतिहेतु, बीजो तिरिय के० तिर्यंचगतिहेतु, त्रीजो नर के मनुष्यगतिहेतु, चोथो अमरा के देवगतिहेतु, पहेलो सम्म के सम्यक्त्वनो घात करे, बीजो अणु के देशविरतिनो घात करे, त्रीजो सब विरई के सर्वविरतिनो घात करे, चोथो अहखायचरित्त के यथाख्यात चारित्रनो घात करे. ए रीतें चार पूर्वोक्त पदार्थना घायकरा के घातना करनारा जाणवा. __ जावजीव सुधी जे क्रोधादिक चारे कोई रीतें निवृत्ते नहीं, एवा दुःसाध्य, ते अनंतानुबंधीया क्रोधादिक चारे अनुक्रमें लेवा. जे कषाय, एक वर्ष सुधी घणा उपायें को पण रीते निवृत्ते नहीं ते अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक चार कषाय कुःसाध्य जाणवा. जे चार महीना सुधी निवृत्ते नहीं, ते प्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक चार कषाय जाणवा. जे पंदर दिवस सुधी उत्कृष्टा रहे, ते सुसाध्य क्रोधादिक चार कषाय संज्वलना कहीयें. हवे संक्लेशतारतम्य कहे जे. अनंतानुबंधीयाने उदयें जीवने नरकप्रायोग्यकर्म बंधाय, अप्रत्याख्यानावरण कषाय चारने जदयें जीवने तिर्यंचप्रायोग्यकर्म बंधाय, प्रत्याख्यानावरणकषाय चारने उदयें जीवने मनुष्यगतिप्रायोग्य कर्म बंधाय,संज्वलनाकषाय चारने उदयें जीवने देवगति प्रायोग्य कर्म बंधाय. हवे एना घातगुण कहे बे. __ अनंतानुबंधीया कषायनो उदय, सम्यक्त्वनो घात करे. अप्रत्याख्यानावरण कषायनो उदय, अणुव्रतनो घात करे, प्रत्याख्यानावरण कषायनो उदय, सर्व विरतिनो घात करे. संज्वलनाकषाय चारनो उदय, यथाख्यातचारित्रनो घात करे. एना उदयथी यथाख्यातचारित्र नावे, केम के उपशांतमोहगुणगणुं आव्युं ते पण संज्वलनाने उदयें जाय. तथा सरागसंयमने विषे पण देशनंगरूप अतिचार उपजावे, जे जणी सर्वविरतिने विषे अतिचार, ते संज्वलनाने उदय होय. अने शेष बार कषायने उदयें अनाचाररूप मूलग्नंग थाय. तथा अंहीं जावजीव, वर्ष, चारमास, पदा, इत्यादिक कालमान कह्यु तथा नरकादिकगतिप्रायोग्यवंध कह्यो, ते सर्व मुग्धजन समजाववाने प्रायिक जाणवू. अन्यथा बाहुबलीने एक वर्षसुधी मान रह्यं पण ते थकी चारित्रनो सर्वघात न थयो ते जणी संज्वलनो मान तथा प्रसन्नचं राजर्षिनी पेरें अंतरमुहुर्त्तमात्र पण अनंतानुबंधी रहे, तेथी अनियम जाणवो ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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