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________________ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १ ३४३ जीव संसारमाहे रहे तथा हास्यादिक उ अने त्रण वेद, ए नवनें नोकषाय एवं नाम कही. जे जणी एथी कषाय उपजे; हास्यथी क्रोध तथा राग जपजे तथा रागादिकथी हास्यादिक होय; एम कषायने समीपे कार्यताये तथा कारणतायें होय. ते जणी एने नोकषाय कहीये. एम जीवने अहिताचरण प्रवृत्तिहेतु अने हिताचरणरोधक, ए बेहु क्रियाविपर्यास करे, ते माटे ए चारित्रमोहनीयना उत्तरनेद पच्चीश होय. ॥हवे ए पच्चीश नेदनां स्वरूप कहे .॥ तिहां सूत्र ते सूचनमात्र होय तेथी एक पदांश कहे थके पण श्राद्म पद बेवं. जेम नीम कहेवा थकी नीमसेन समजाय .तेम अण एवं पद कह्या थकां अनंतानुबंधीया कषाय लीजें, जे माटे जेनो अंत नहीं तेने अनंत कहीयें एटले अनंत संसार तेहना अनुबंधी कहेतां वृद्धि करनारा जे कषाय, ते अनंतानुबंधी कषाय जाणवा. कदाग्रहरूप युक्तिये बुद्धिशून्यपणे एकांतवादिनी रुचि टले नहीं. ए अनंतानुबंध। रागयुक्तियुक्तपणे जिनमत उपरें अरुचिरूप वेष, ते अनंतानुबंधी. तेणे बाह्यवृत्तियें जो पण कषायोदय मंद देखाय ले तो पण युक्तिहीन स्वमतपक्षपातिने नियमा अनं. तानुबंधीयानो उदय जाणवो. अहीं श्रीशीलंगाचार्य ए चार अनंतानुबंधी अनेत्रण मिथ्यात्वमोहनीयादिक, एवं सात प्रकृति सदहणा फेरवे ने एम कडं , ते माटे ए सातने दर्शनमोहनीयमां गणी जे अने शेष एकवीश प्रकृति चारित्र मोह. नीयनी कहीये. विशेषार्थीयें श्री श्राचारांगनी टीका जोवी. ए अनंतानुबंधी चार कषाय कह्या. जेना उदयथी अप्पच्चरकाणा के अप्रत्याख्यान एटले देशविरतिपणुं तेने पण आवरे, रोके, तो सर्व विरतिपणुं होयज केम ? एवी क्रोधादिक प्रकृतिनुं नाम अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय चार जाणवा. आत्माने प्रवृतिमार्गथी प्रतिकूल करवो ते प्रत्याख्यान सर्व विरतियात्मगुणरूप जाणवू. तेना उदयने जे थावरे, श्राववा न दिये, ते प्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक चार कषाय जाणवा. सं के० थोडंशं परीसहादिकें करी यतिने ज्वले के दीपे, पठी तरत विसराल थाय ते संज्वलन, क्रोध, मान, माया अने लोज जाणवो. एम चार कषायना शोल नेद कह्या. ॥ हवे मुग्धजनने एनो नेद जणाववाने गाथा कहे . ॥ जाजीव वरिस चनमास, परकग्गा निरय तिरिय नर अमरा॥ सम्माणु सवविरई, अदखाय चरित्त घायकरा ॥ १७ ॥ अर्थ-जाजीव के प्रथम जावजीव सुधी रहे, ते अनंतानुबंधी कषाय कहीयें: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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