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________________ ३३४ कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. देशघाति मतिज्ञानावरणादिक चार प्रकृतियें श्रावरी, तेथी तेने दयोपशमविशेषे न्हाने महोटे अर्डडि प्रसरतां रविप्रकाशनी पेरें ज्ञाननु तरतमपणुं होय. तेमांदे पण एक मनःपर्यवज्ञान, बीजं अवधिज्ञान, ए बेहु ज्ञानना श्रावरणना केटलाएक रसस्पडक, सर्वघातिया, शेष देशघातियापणे ए बेहु क्षयोपशमथी अविरोधनणी दे. शघाति कह्यां. अने केवलज्ञानावरण सर्वघाती होय. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोइनीय, अंतराय, ए चार घातिकर्म कहीये. एम ज्ञानावरणीयना पांच नेद कह्या. हवे नव नेदसहित दर्शनावरणीय नामें बीजुं कर्म विवरे बे. देखीयें सामान्य प्रकारें रूपें निर्विशेषपणे वस्तुने जेणे करी अथवा देखवो सामान्यरूपें वस्तुनो श्रवबोध ते दर्शन कहीयें. ते एक चकुदर्शन, बीजुं श्रचकुदर्शन, त्रीजुं अवधिदर्शन अने चोथु केवलदर्शन. ए चार नेद अने एक निजी, बीजी निमानिडा, त्रीजी प्रचला, चोथी प्रचलाप्रचला,पांचमी थीनबी.ए पांच निडा पण इंजियावबोधने रुंधे ,तेथी ए पांचने पण दर्शनावरणीयकर्म कहीयें. एम चार दर्शनना थावरण भने पांच निसा मली नव नेद दर्शनावरणीय कर्मना थाय. ते दर्शनावरणीय कर्मनो खनाव (वेत्री के०) पोलीथा सरखो जे. जेम पोलीपायें मार्ग दीधाविना लोक, राजाने मली शके नहीं अने राजा पण कशुं लोकनुं स्वरूप देखे जाणे नहीं, शुजाणे के लोकमांहे सुखी कोण तथा पुःखी कोण ? तथा नलो कोण जे के जूमो कोण ? एवं कांश जाणी शके नहीं; तेवी रीतें चनुप्रमुख दर्शनावरणरूप दरवान पूर थया विना जीवरूप राजा ते घटादिक लोकनुं स्वरूप देखे नहीं. तेने क्षयोपशमें घटादिक लोक, दर्शनस्पर्शन विषय थाय. ते नणी पोलीया समान दर्शनावरण कर्म कयं ॥ ए॥ चस्कूदिहि अचरकू, सेसिदिय उदि केवलदिं च ॥दसण मिद सामन्नं, तस्सावरणं तयं चनदा ॥ पागंतर “दवश् चनदा" ॥१०॥ अर्थ-एक चस्कूदिहि के चकुदर्शन, बीजं अचस्कू के अचनुदर्शन, ते सेसिंदिय के अांखविना बीजां इंजियथकी थयेनुं दर्शन, त्रीजुं उहि के अवधिदर्शन, चोथु केवलेडिंच के० केवलदर्शन, दसणमिद सामन्नं के० ए दर्शन एटखे सामान्यावबोध तस्सावरणं के तेनां चार दर्शनावरण पण तयंचउहा के तेज नामें चार नेदें होय. पाठांतरें हवश्चउहा के० को एक एम कहे जे जे चार नेदें दर्शनावरण होय ॥ इत्यदरार्थः ॥ १० ॥ १.चा के आंख तेणे करी घटादिक पदार्थर्नु सामान्यपणुं देखवू, ते पहेतुं चकु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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