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________________ कर्मविपाकनामा कर्मग्रंथ. १ जे कर्मदलनो ज्ञान आवरवानो स्वनाव, ते प्रथम ज्ञानावरणीयकर्म. दर्शन श्रावरवानो स्वजाव, ते बीजु दर्शनावरणीय कर्म. शुजाशुज वेदवानो खन्नाव ते त्रीजुं वेदनीयकर्म. हिताहित विकल करवानो स्वनाव, ते चोथुमोदनीयकर्म. हमनी जेवो स्वजाव, ते पांचमुंथायुःकर्म. इत्यादिक बधां कर्मो विषे जाणी लेवू. एम मूल प्रकृति , ने उत्तर प्रकृति एकसो ने बहावन होय ए प्रकृतिबंध जाणवो. तथा कोशएक प्रकृति बांधी थकी वीश कोमाकोमी सागरोपम सुधी रहे, कोइएक त्रीश कोडाकोमी सागर सुधी रहे, ए स्थितिबंध जाणवो. तथा कोशएक कर्मनो रस कडवो तथा घाति, कोश्एकनो अघाति तथा मीठगे, एक गणी; बे गणी, इत्यादिक रसबंध जाणवो. तथा कोइएक कर्म मंद, मन वचन कायायोगयोगें करी अल्पप्रदेशिक होय, पातला होय अने कोइएक उत्कटयोगें करी बहुप्रदेशिक स्थूल होय, ए प्रदेशबंध ॥२॥ ॥ ए चार नेद मध्ये पण प्रथम प्रकृतिबंध कह्यो, तेमाटे ते प्रकृतिना मूल नेद आठ बे, तेनां नाम अनुक्रमें त्रीजी गाथायें कहे . ॥ इह नाण दसणावर, ण वेअ मोदान नाम गोआणी॥ विग्धं च पण नव ७ अ, वीस चउ तिसय पण विहं ॥३॥ अर्थ-इह केन्हींनाण के ज्ञान ते गुणपर्यायें करी वस्तुनो निर्णय, सणावरण के बीजुं दर्शनसामान्यावबोधर्नु आवरण . वेत्र के त्रीजु वेदनीयकर्म; मोहान के चोथु मोहनीयकर्म अने पांचमुं आयुःकर्म; नाम के बहु नामकर्म; गोवाणी के सातमुं गोत्रकर्म; विग्धंच के आठमुं अंतरायकर्म. त्यां प्रथम ज्ञानावरणीय कर्मना मतिज्ञानावरणादिक पण के पांच नेद बे. बीजा दर्शनावरणीय कर्मना चार दर्शनावरण तथा पांच निडा मलीने नव के नव नेद . त्रीजा वेदनीय कर्मना शाता ने अशाता मली 3 के बे नेद जे. चोथा मोहनीय कर्मना दर्शनमोहनीय त्रण, श्रने चारित्र मोहनीय पच्चीश मलीने अहवीस के अहावीश नेद थाय. एम चारे कमैना चुम्मालीश नेद थया. पांचमा आयुःकर्मना देवायुःप्रमुख चन के चारनेद थाय. एवं अडतालीश. बहा नामकर्मना गत्यादिक पंच्चोत्तर तथा पिंप्रकृति अहावीश मलीने तिसय के एकशो ने त्रण नेद थाय. सातमा गोत्रकर्मना ऊंच नीच नेदें करी मु के बे नेद थाय. बाग्मा अंतरायकर्मना पण विहं के० पांच नेद. एम सर्व म. लीने श्राप मूलप्रकृतिना नेदना एकशो ने अहावन उत्तरप्रकृतिनेद थाय ॥ ३त्यदरार्थः॥३॥ जाणवू ते ज्ञान अथवा जाणीये. सामान्य विशेषात्मक वस्तुमांहे नाम, जाति, गुण, क्रियादिक विशेषयोजनासहित वस्तुखरूप जाणीयें, तेमाटे एने ज्ञान कहीये. जाणी. सामान्य विशेषात्मक वस्तुमांझे नाम, जहावि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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