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________________ ३१२ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १ अणुगामि वढमाणय, पडिवाईयर विदा बहा उदी ॥ रि जम विनलमई मण, नाणं केवल मिगविहाणं ॥ ७ ॥ अर्थ- अणुगामि के० अनुगामि, वढमाणय के० ' वर्धमान, 'पमिवाई के' प्रतिपाति, 'इयर' के स्तर ते अनानुगामी, हीयमान तथा अप्रतिपाति; ए 'विहा के' (विधा एटले, ) प्रकार, 'बहा के' (षमधा ) 3 प्रकारे, 'उही के०' अवधि ज्ञान जाणवू, अने 'रिउमर के' जुमति विउलमा के० ' विपुलमति, ए बे प्रकारे 'मणनाणं के' मनपर्यवज्ञान जाणवू, तथा केवलं के केवलज्ञान 'ग के एक,' 'विहाणं' के प्रकारे . ॥ ॥ अनुगामि, वर्षमान, प्रतिपाति, अनानुगामि, हीयमान, तथा अप्रतिपाति ए प्रकार गुणप्रत्यय अवधिज्ञानना बे. उक्तंच नंद्यध्ययने-“तं समास बविहं पन्नतं तं जहा, थाणुगामियं, श्रणाणुगामियं, वठ्ठमाणयं, हीयमाणयं, पडिवाई, अपमिवा६,” तेमां प्रथम जे ठेकाणे अवधिज्ञान उत्पन्न थयुं होय, ते ठेकाणुं मूकीने बीजे देशांतर प्रमुखनेविषे ज्यां जाय त्यां लोचननी पेठे जे साये आवे, तेने बानुगामिक अवधि कहीयें; अर्थात् ज्यां पुरुष विचरे त्यां साथे श्रावे ते. बीजु जे ठेकाणे रह्यां अवधि उत्पन्न थयुं होय ते स्थानके श्रावे तेवारेज होय पण अन्यत्र जाय तेवारे न होय. श्रृंखलाबद्ध प्रदीपनी पेठे ते क्षेत्र प्रत्ययि क्षयोपशमने लीधे माटे साथे न आवे तेने अनानुगामि कहीयें; यदाद नगवान् श्री देवर्डिगणि क्षमाश्रमणः- "सेकिंतं अणाणुगामियं, हिनाणं, हिन्नाणंतंजहा नामएगेश पुरिसे एगं महं जोशहाणं काळं तस्सेव जोश्हाणस्स परिपेरंतेसु परिहिंडमाणे परिहिंडमाणे परिघोलमाणे तमेव जो श्हाणं पास अनबगए न पास एवमेव अणाणुगामियं हिनाणं जव समुपद्यश् तव. संखिद्याणिवा असंखिद्याणिवा जोयणा पासश्न अन्नब." नाष्यकारोप्याह-- "अणुगामिन अणुगबश, गतं लोयणं जहा पुरिसं; श्यरोउनाणु गड, ठियप्पश्ववगळतं.” इति. त्रीजु जे वधे तेने वर्षमान कहीये. एटले शलगेली अग्निमां जेम जेम सरपण नाखता यावीएं तेम तेम वधती वधतीज्वाला थती आवे. तेनी पेठे यथायोग प्रशस्त अति प्रशस्ततर अध्यवसायने लीधे, पूर्वावस्थाथी जे उत्तरोत्तर समय समय वधतुं जाय तेने वर्षमान अवधिज्ञान कहीये. अर्थात् प्रथम उपजती वखते अंगुलना असंख्यातमा जाग जेटलुं क्षेत्र जाणे देखे, पठी वधतां वधतां यावत् अलोकाकाशनेविषे खोक जेवडा असंख्याता खंमुक देखे.. चोथु, पूर्वे शुजवपरिणामने वसे घणुं उपजे अने पड़ी तथाविध सामग्रीनो अ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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