SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १ ३०ए कालेकरी उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणीनेविषे चोथे तथा पांचमे बारे श्रुतझान होय, अने बड़े आरे विछेद थाय ने तेथी सादि सपर्यवसित के अने महाविदेह क्षेत्रनेविषे एवं कालचक्र नहीं होवाने लीधेत्यांश्रुतज्ञान पण अनादि अपर्यवसित जे. ___ अने जावथी जव्य सिडिआ जीवने ज्यारे सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय ने, त्यारे आदि अने केवल छाननी प्राप्ति थाय ने त्यारे अंत होवाथी सादि सपर्यवसित ने; अने अजव्य सिद्धिया जीव आश्रयी क्षयोपशमिक जावे श्रुतज्ञान अनादि अपर्यवसित . --- अग्यारमुं गमिक श्रुत, ते ज्यां सूत्रना सरखा घालावा एटले पाठ दीगमां श्रावे त्यां जाणवू. ते प्रायें करी दृष्टिवाद सूत्रने विषे जे. बारमुं अगमिक श्रुत, ते जेने विषे अण सरखा अदरोना आलावा होय ते जा. ण. ते प्रायें कालिक श्रुतने विषे बे. . तेरमुं अंगप्रविष्ट, ते छादशांगी रूप जाणवं. तथाहि-"श्रहारस पय सहसा, आयारे उगुण उगुण सेसेसुः सूयगम गण समवा, य नगवई नाय धम्मकहा ॥१॥ अंगंजवासगदसा, अंतगम अणुत्तरोववाश् दसा, पन्हावागरणंवा विवाग सुयमिगदसं अंगं ॥ २ ॥ परिकम्म सुत्तपुवा, णुउँग पुवगयचूलिया एवं, पण विहिवायनेया ॥ चउदस पुवाई पुवगयं ॥ ३॥ उप्पाए पयकोमी, अग्गाणी अंमि बन्नवर लरका; वि. रियपवाए अनि, प्पवाश्लकंसरिय सही ॥४॥ एग पजणी कोमी, पयाणनाणप्प. वायपुवंमि । सिच्चप्पवायपुवे एगापयको डिबच्चपया ॥ ५॥ बबीसंपयकोमी, पुवेयथा यप्पवायनामंमि । कम्मप्पवायपुवे, पयकोमी असिश्लक जुया ॥६॥ पञ्चरकाणनिहाणे, पुवेचुलसीपय सय सहस्सा ॥ दसपयसहस जुयापय, कोमीविजापवायंमि॥ कहाणनामधिो, पुवं मिपयाणको डिब्बीसा । उत्पन्न लरक कोडी, पयाण पाणा उ पुवंमि ॥ ॥ किरियाविशालपुवे, नवपयकोमीउबितिसमय विउ । सिरिलोक बिंदु सारे, सढवाल सयपयलरका.॥ ए॥ चौदमुं अंगबाह्यश्रुत, ते श्रावश्यक तथा दश वैकालिकादिक जाणवं. अर्थात् श्र. ग्यार अंगथी जे बाह्य उपांग प्रमुख तेने अंगवाह्यश्रुत कहीये. ॥ ६ ॥ एवी रीते श्रुतज्ञानना चौद नेद कह्या. ॥ हवे बीजा जे वीश नेद थाय ते कहे .॥ पद्यय अरकर पय संघाया, पडिवत्ति तहय अणुउंगो ॥ .. पाहड पाहम पाहुड, वथपुवाय ससमासा ॥॥ ७ ॥ अर्थ- आ गाथामा दश नेद कह्या , तेनी साथे बीजा दश बेरा ससमासा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy