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________________ ३०४ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ.१ ख्यात नवावगम स्वरूप मति ज्ञाननोज नेद बे. श्री श्राचारांगनी टीकामां जाती स्मरण झानने धारणानो नेद कह्यो -"जातिस्मरणं त्वानिनिबोधिक ज्ञान विशेष मिति.” तथा को एक सनाने विष बेठेला घणा श्रोता जनोए शंख तथा जेरी प्रमुखनो नाद अथवा शब्द समकाले एकठगे सांजल्यो बता, सर्वनी क्षयोपशमनी विचित्रताथी अधिक न्यून प्रमुख सांजव्यामां आवे बे, जेमके, कोश्ने ते शंख नेरी थादि तुरीनो नाद जिन्नचिन्न सांख्यामां आवे . तेना जाणवामां एवं श्रावे के, एटली नेरी थाटला संख इत्यादि वाजे ने. तेने बहु अवग्रह कहीये; कोश्ने अव्यक्तपणे मात्र वाजिन वाजे के एटर्बुज सांजव्यामां श्रावे , तेने अबहु अवग्रह कहिएं.. __तथा ते शब्दमां पण कोश्कने मधुर मंजत्वादि बहु पर्यायोपेत जे शंखादिक ध्वनि पृथक् पृथक् घणा प्रकारे सांजल्यामां श्रावे तेने बहुविध अवग्रह कहीयें; कोईने एक बे पर्यायोपेत ते ध्वनि सांजस्यामां आवे जे तेने अबहुविध अवग्रह कहीये. कोईकने तुरत ते नाद जाणवामां आवे ने तेने विप्रवग्रह कहीयें, कोईकने विचार विचारीने घणीवार पालथी जाणवामां आवे , ते श्रदिप अवग्रह. ___ कोई जेम ध्वजारूप लिंगे करी देवकुल उलखाय . तेम लिंगसहित जाणे तेने निश्रितावग्रह कहीएं. को उक्त प्रकारे लिंगरहित जाणे तेने अनिश्रितावग्रह कहीये. कोईने संशयरहित संनलाय , तेने असंदिग्धावग्रह कहीयें; कोईने संशयसहित संजलाय , तेने संदिग्धावग्रह कहीयें. ___ कोईके एक वेला सांजली ग्रहण करी लीधेनुं ते सदा सर्वदा स्मरण रहे पण वीसरे नहीं तेने ध्रुव श्रवग्रद कहीयें; श्रने कोईकने एकवार ग्रहण करेलुं सर्वदा रहे नहीं, तेने अध्रुवावग्रह कहीये. ___एवी रीते एक अवग्रहना बार नेद ले. ते ने पूर्वोक्त श्रहावीश नेदोथी गुणतांत्रणसें ने बत्रीश नेद मतिज्ञानना थाय. ए विष नाष्यपियूषपयोधिए पण कत्यु जे. ___ "जंबहु बहुविह खिप्पा, निस्सियनिबियधुवेयरविनत्ता; पुणरुग्गहादर्जतो, तं उत्तीसत्ति सयनेयं ॥ १॥ नाणा सद्द समूह, बहुविहंमुण निन्नजाश्यं; बहुविह मणेगनेयं, इकिकं निझमहराई. ॥॥ खिप्पमचिरेण तंचिय, सरूवतं श्रणिस्सिय मलिंग; निलियमसंसयंज, धुवमच्चंतं नयकया ॥३॥ तथा एमां अश्रुत निश्रितना चार नेद नाखीएं, तो त्रणसो ने चालीश नेद मतिज्ञानना थाय . अहीं अर्थावग्रह एक समय प्रमाण जे. श्हा अने अपाय अंतर्मुहूर्त प्रमाण दे. धारणा संख्यात असंख्यात कालसुधी . अथवा अव्य, क्षेत्र, काल तथा नाव लक्षण चार नेदे करी मतिझान चार प्रकारचं . मतिज्ञानी आदेश थकी सर्व अव्य जाणे, पण देखे नही. क्षेत्र थकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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