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________________ कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १. श त्यय उत्पन्न करे बे. एटले ते परने दीधुं जाय बे. माटे ऐ बन्ने ज्ञानमां नेद बे, यदाद जाप्यसुधांजो निधिः " लकण नेयादेऊ, फलजाव उजेय इंदिय विजागा; वग्गकरमूयेयर, या जे मइ सुयाणं. " अवधिज्ञान त्रीजुं गएयुं बे तेनो हेतु श्रा बे- काल, विपर्यय, स्वामि तथा लाज़ ए चार धर्मोनुं तेनी साथे सरखापएं बे. तेमाटे मति श्रुतज्ञानांतरे अवधिज्ञान कह्युं छे. ते कड़े बे. तेमां एक प्रतिपाती एक जीवने मति तथा श्रुतनी पेठे साधिक Tea सागरोपम कालसुधी अवधिज्ञान रही शके बे तेथी काल साधर्म्य बे. तथा मिथ्यात्वनो उदय थयाथी जेम मति छाने श्रुत विपर्यय जावने पामे बे, तेम अवधिज्ञान पण विपर्यय जावने पामे बे. तेथी मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान तथा विनंगज्ञान विनंगता पामे बे. एवी रीते विपर्यय साधर्म्य बे. उक्तंच " आद्यत्रयम ज्ञानमपिजवति मिध्यात्वसंयुक्तमिति " जे मति तथा श्रुतज्ञाननो स्वामि तेज अवधिज्ञाननो स्वामि होवाथी स्वामी साधर्म्य बे. तथा देवतादिक जे विनंग ज्ञानवान होय बे, तेने ज्यारे सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय बे; त्यारे युगपत् मति, श्रुत तथा अवधि एत्रनो लाज थाय बे, माटे लान साधर्म्य बे. मनः पर्यव ज्ञान चोथुं गएयुं बे, तेनो देतु या बे-उद्मस्थ, विषय जाव तथा प्रत्यक्ष ए चार धर्मोनुं तेर्जनी साथै सरखापएं बे. जेम अवधिज्ञान ब्रद्मस्थने थाय बे, तेम मनः पर्यव ज्ञान पण बद्मस्थने थाय बे; माटे बद्मस्थ साधर्म्य बे. जेम अवधिज्ञानरूपी द्रव्य विषयक बे, तेम मनः पर्यव ज्ञान पण रूपी द्रव्यविषयक बे, तेथी विषय साधर्म्य बे. जेम अवधिज्ञान क्षयोपशमिक जावे बे. तेम मनःपर्यव पण क्षयोपशमिक जावे माटे जाव साधर्म्य बे, तथा जेम अवधिज्ञान प्रत्यक्ष बे, तेम मनःपव ज्ञान पण प्रत्यक्ष बे, माटे प्रत्यक्ष साधर्म्य बे. उक्तंच " काल विवयसामि, तलाज साहंम जवहीतत्तो; माणस मित्तो बनम, छविसय जावाइ साइंमा " ॥ १ ॥ तथा मनपर्यव ज्ञानांतरे केवलज्ञान कर्तुं बे. ते केवलज्ञान सर्वोत्तम बे, माटे कयुं बे; श्रथवा श्रप्रमत्तयतिरूप स्वामि साधर्म्य बे, माटे, अथवा सर्वने वसाने लाज दोa. केमके मतिज्ञानादि चार ज्ञानो जे बे ते वस्तुनो देशथी परिछेद केटलाएक परिमाण करनार बे, अने केवल ज्ञान जे बे, ते सकल वस्तु स्तोमपरिछेदक एसमय विषे विषयसमूहनुं परिमाण करनारो बे. सर्वनुं मस्तकरूप होवाथी सर्वोत्तम बे तेथी बेवटे कयुं ते. जेम मनपर्यवज्ञान अप्रमत्तयतिने उत्पन्न याय बे, म केवलज्ञान पण अप्रमत्तयतिने उत्पन्न थवाथी स्वामि साधर्म्य बे. तथा जेने बीजां चारे ज्ञान उत्पन्न थयां होय तेने नियमे करी सर्व ज्ञानना अवसान ( अंत) मां Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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