SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म विपाकनामे कर्मग्रंथ. १ श न होय तेने असाधारण कहीयें, सामान्य पदार्थ ते सादृश होय बे, तेनो ज्यां श्राव होय तेने असामान्य अथवा असाधारण कही यें. केवल ज्ञान जेवो बीजो कोई पदार्थ नथी, तेथी अनन्य सदृश बे, माटे तेने केवलज्ञान कहीयें अथवा अनंतार्थ वाचक केवल शब्द बे; केमके, अनंतज्ञेय पदार्थोने जाणे माटे तेने केवलज्ञान कहीयें. अथवा निर्व्याघातार्थ वाचक केवल शब्द बे, केमके, लोकालोकने विषे क्यांएं पण एनो व्याघात तो नथी तेथी केवलज्ञान कहीएं. एवी रीते ए पांच ज्ञाननो शब्दार्थ जावो. - थवा केवलंच तत् ज्ञानंच केवलज्ञानं यथावस्थित नूतनवद्भावि जाव स्वभाव जासि ज्ञानमिति जावना. एटले केवल एवं जे ज्ञान ते केवलज्ञान एटले नूत, जविष्य तथा वर्त्तमानकालनो यथावस्थित जाव जेथी प्रगट थाय तेने केवल ज्ञान कहीयें. आशंका- पांच ज्ञानोनो एवा अनुक्रमे करी उपन्यास करवानुं शुं कारण दतुं ? उत्तर- ए पांच ज्ञानमां मति अने श्रुत ए बन्न ज्ञान एकत्र जयां बे. केमके, एना परस्पर स्वामी, काल, कारण, विषय तथा परोक्ष ए पांच धर्म सरखा बे. जेमके मतिज्ञाननो स्वामी बे, तेज श्रुत ज्ञाननो स्वामी बे; अने जे श्रुतज्ञाननो स्वामी, तेज मतिज्ञाननो स्वामी जब मनाएं तब सुयनाणं, जबसुयनाणं तचमनाएं इत्यादि, वचन प्रमाण्यात्. माटे स्वामी साधर्म्य बे. जेटलो मतिज्ञाननो स्थिति काल बे, तेटलोज श्रुतज्ञाननो स्थिति काल बे. ते प्रवाहनी अपेक्षाए जो लेईएं तो अतीत अनागत तथा वर्त्तमानरूप सर्व काल बे, छाने प्रतिपाती एक जीवनी अपेक्षाए लैयें तो साधिक बासठ सागरोपम प्रमाण काल बे. उक्तंच " दोवारे विजयाइसु, गयस्स तिन व ताई; श्रइरेगं नर जवियं, नाणा जीवाण सवद्धा. " एवीते काल साधर्म्य वे. तथा इंद्रियरूप निमित्त कारणवान मतिज्ञान बे, तेम श्रुत ज्ञान पण इंद्रिय निमित्त बे. एवीरीते कारण साधर्म्यपणुं बे. तथा जेम मतिज्ञानना श्रा - देशी सर्व द्रव्य विषय बे, तेमज श्रुत ज्ञानना प्रदेशथी पण सर्व द्रव्य विषय होवाथी विषय साधर्म्य बे. अने जेम मतिज्ञान परोक्ष बे, तेमज श्रुतज्ञान पण परोक होवाथी परोक्ष साधर्म्य बे. ते कारण माटे स्वाम्यादि साधर्म्य होवाथी मति तथा श्रुत नियमयी एकत्र कथन करवा योग्य बे. तथा प्रथम ए बे ज्ञान होय तोज पश्चात् अवधि श्रादिक बीजां ज्ञानो उत्पन्न थाय बे, माटे अवधि ज्ञानादिकथी पहेला गण्या बे. उक्तंच " जं सामि काल कारण, विसय परोरकत्तणेहिं तुलाई; तनावे सेसाणिय, तेपाईए मइ सुयाई. "" शंका-मति अने श्रुत ए बे ज्ञानोमां मतिज्ञान प्रथम गएयुं छाने श्रुतज्ञान पढी गएयुं तेनुं कारण शुं ? ३८ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy